शनिवार, जनवरी 07, 2017

माँ बाप की भक्ति (कविता)

मैं मुर्ख जिव पशु तुल्य, पूजा न जानू तेरी!

सुना हैं तेरा नाम, जो राम राम कहूँ घड़ी फेरी!!

धुप कोन लकड़ी को तोहे लगे सुगन्ध प्यारो!

कौन भोजन के आप रसिया, न जाने दुखियारों!!

काशी गया न बाप मोरा, दादा गया न द्वारिका!

न मैं रईस का बेटा हूँ, न अमीर बाप नारी का!!

भंगवा का भाव महंगा, झारी महंगा गंग नीर का!

कोन वन में जा भक्ति करूँ, न मिले कटोरा खीर का !!

जप तप मंत्र क्या हैं, यह मेरी समझ से परे!

राम आजा रे!ऐसे यह दास, तोहे पुकार करे!!

माँ बाप की शरण रज, सिर का मानु ताज!

ख़ुशी उनको हँसते देख, हो रही मुझे आज!!

और सुख ना जानता, विषय भोग विकार !

मात पिता हरी सम, इन्ही दिखायो संसार !!

माया साथ पल चार, नारी साथ जब तक जवान !

जन्मदाता भर जीवन के संगी,तो कोउ और भगवान!!

धरती बिन क्षण न बीते, जमीं से अधर !

सूर्य बिन कौन प्रकाश करे, करूँ इनकी कदर !!

जग जान भ्रात सरीख, गौ जानु मैया समान !

माँ बाप की करूँ नोकरी,यही मेरे भगवान !!

कहत हैं नोकर “देवा”, सेठ ओ मेरे मैया तात !

तुम पलक ना रूठियो, आप बिन जीया न जात !!

दया कर सर हाथ रखना, देवा के माँ बाप !

आप रूठता जग रूठे, मैं मरुँ करत विलाप !!

💐💐💐💐

                -देवा जांगिड़

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