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बुधवार, सितंबर 17, 2025

Rawal Mallinath Mharaj, रावल मल्लिनाथ महाराज, तिलवाड़ा मेला


(यह फ़ोटो पुस्तक के मुख्य पृष्ठ का हो सकता हैं, इंटरनेट द्वारा प्राप्त)

दोस्तों आज हम बात कर रहे हैं, राव मल्लिनाथ जी के बारे में,
संत श्री रावल मलिनाथ जी राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता और संत माने जाते हैं। उन्हें विशेष रूप से मारवाड़–मालवा क्षेत्र में पूजा जाता है। उनके मंदिरों पर देश के सभी स्थानों से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
रावल मलिनाथ जी को वीर, तपस्वी और लोककल्याणकारी संत के रूप में पूजा जाता है।

प्रचलित लोककथाओं के अनुसार वे क्षत्रिय राजपूत कुल से थे , मेवानगर में राज करते थे, बाद में राज्य, वैभव और सुख छोड़कर तपस्या में लग गए।

इनका पूरा जीवन त्याग, सेवा और परमार्थ का प्रतीक माना जाता है।

इन्हें “रावल” की उपाधि मिली , जो क्षत्रिय राजपूत परंपरा में बड़े सम्मान का शब्द है।

इनका मुख्य मंदिर

मलिनाथ मंदिर, तिलवाड़ा जिला बाड़मेर , में जो अभी नया जिला बालोतरा, राजस्थान में सबसे प्रसिद्ध है।
यहाँ हर साल बहुत बड़ा मेला लगता है, जहाँ हजारों , टूरिस्ट और श्रद्धालु आते हैं।

स्थानीय ग्रामीणों के बीच यह माना जाता है कि मलिनाथ जी की कृपा से रोग, संकट और दु:ख दूर होते हैं।


 ईनके साथ काफी मान्यताएँ भी जुड़ी हुई हैं,

 वे करुणामयी थे और सबकी मदद करते थे।
 रोगी, निर्धन और पीड़ित उनके राज दरबार में आशीर्वाद पाने आते थे।
इनकी आध्यात्मिक साधना से क्षेत्र में शांति और समृद्धि बनी रही।
 लोग इन्हें वीरता और तप का आदर्श मानते हैं।

धार्मिक महत्व से भी परम पूजनीय हैं।

लोकगीतों, भजनों और कथाओं में रावल मलिनाथ जी का उल्लेख मिलता है।

उन्हें अन्य संतों के साथ लोक-धार्मिक परंपरा में पूजते हैं।

ग्रामीण जीवन में उनकी उपस्थिति आज भी सामाजिक एकता और धार्मिक आस्था का प्रतीक है।

रावल मलिनाथ जी की कथा 

रावल मलिनाथ जी से जुड़ी कई लोककथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कथा इस प्रकार है, जो राजस्थान के गाँव-गाँव में श्रद्धा से सुनाई जाती है:

बहुत समय पहले मारवाड़ क्षेत्र में एक वीर क्षत्रिय कुल में रावल मलिनाथ जी का जन्म हुआ। वे शौर्य, पराक्रम और ऐश्वर्य से संपन्न थे, परंतु वैभव के बावजूद उनके हृदय में वैराग्य जागा। उन्होंने देखा कि धन, राज्य, सत्ता – सब क्षणिक है और मनुष्य का वास्तविक कल्याण सेवा, तप और त्याग में है।

उन्होंने परिवार और राजसी सुख छोड़ दिए और तपस्या के लिए जंगलों की ओर चल पड़े। कहते हैं कि वे कठिन साधना करते थे – उपवास, ध्यान, योग और जप से आत्मशुद्धि करते रहे। उनके पास कोई भोग-विलास नहीं था, केवल सत्य, सेवा और करुणा का मार्ग।

एक बार एक गाँव में महामारी फैली। लोग भयभीत थे, न दवा, न उपचार। तब रावल मलिनाथ जी वहाँ पहुँचे। उन्होंने न कोई बड़ा यज्ञ किया, न कोई चमत्कार दिखाया। बस प्रेम से रोगियों की सेवा की, भोजन बाँटा, मनोबल बढ़ाया। विश्वास किया जाता है कि उनके स्पर्श और आशीर्वाद से रोगी स्वस्थ होने लगे। लोग उन्हें भगवान का रूप मानकर पूजने लगे।

धीरे-धीरे उनका नाम दूर-दूर तक फैल गया। वे सबके लिए समान न किसी का जाति पूछते, न धन। जो भी श्रद्धा से आता, उसे आशीर्वाद देते। उनके तप और सेवा की महिमा से पूरा क्षेत्र शांति और समृद्धि की ओर बढ़ा।

आज भी तिलवाड़ा और आसपास के गाँवों में लोग उनके मेले में जाकर अपने संकट, रोग, विवाह, संतान, सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। उनकी पूजा में सरलता, करुणा और सेवा का आदर्श मुख्य माना जाता है।

 इस कथा से मिलने वाले संदेश यह हैं कि,
 बाहरी वैभव से अधिक अंतर्मन की शुद्धि महत्वपूर्ण है।
 सेवा, करुणा और निस्वार्थ भाव से बड़ी से बड़ी समस्या दूर हो सकती है।
 संकट के समय धैर्य और विश्वास ही सबसे बड़ा सहारा है।
 समाज की एकता और सद्भाव से क्षेत्र में सुख और शांति आती है।

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