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शुक्रवार, अक्टूबर 17, 2025

वृंदावन धाम

 


दोस्तों आज हम आपको बता रहे हैं भक्ति, प्रेम और आध्यात्मिकता की नगरी श्री वृंदावन के बारे में जानकारी 


श्री वृंदावन उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले में स्थित एक अत्यंत पवित्र और लोकप्रिय धार्मिक नगरी है। यह भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का केंद्र और प्रेम कुंज माना जाता है। यहाँ हर गली, हर मंदिर, हर घाट प्रेम और भक्ति से ओत-प्रोत है।

माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अपने बालपन और किशोर वय के बहुत से समय को यहाँ पर बिताया।

वृंदावन में लगभग 1000 से भी अधिक मंदिर हैं और सैकड़ों साधु संतो का वास है।

विश्व प्रसिद्ध परम पूजनीय संत श्री प्रेमानंद महाराज जी भी वृंदावन से वास करते हैं।


वृंदावन प्रेम, भक्ति और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ अनेक प्राचीन और सुंदर मंदिर हैं। नीचे कुछ प्रमुख मंदिरों की सूची दी गई है, इनका दर्शन अवश्य करना चाहिए।


श्री बाँके बिहारी मंदिर

वृंदावन का सबसे प्रसिद्ध मंदिर; कृष्ण की मनमोहक मूर्ति “बिहारी जी” की पूजा होती है। यहाँ भक्ति-भाव अत्यंत गहरा है।


श्री राधा रानी मंदिर (राधारानी मंदिर)

राधा जी को समर्पित मंदिर; भक्त प्रेम और भक्ति का अनुभव करते हैं।


गोविंद देव मंदिर

16वीं सदी का भव्य मंदिर; कृष्ण की गोविंद रूप में पूजा होती है।


रंगजी मंदिर (रंगनाथ जी)

दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित विशाल मंदिर; यहाँ भगवान रंगनाथ (विष्णु) और राधा-कृष्ण की पूजा होती है।


मदन मोहन मंदिर

वृंदावन के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक; कृष्ण के मदन मोहन स्वरूप की पूजा।


श्री राधा दामोदर मंदिर

सुंदर वास्तुकला; यहाँ से यमुना नदी का दृश्य मनमोहक है।


केशी घाट मंदिर

यमुना किनारे स्थित; यहाँ स्नान और ध्यान की परंपरा है।

सेवा कुंज माना जाता है कि राधा-कृष्ण की रासलीला यहाँ होती थी; शाम के समय यहाँ आरती होती है।


निधिवन रहस्यमय बगीचा;

 लोक मान्यता है कि यहाँ आज भी राधा-कृष्ण की रासलीला होती है।


प्रेम मंदिर

आधुनिक भव्य मंदिर, जहाँ राधा-कृष्ण के जीवन और लीलाओं को दर्शाने वाली कलात्मक झांकियाँ हैं।


चीर घाट 

कृष्ण द्वारा अपनी माता यशोदा से छुपने की कथा से जुड़ा हुआ।


मानसी गंगा

एक पवित्र जलाशय जहाँ कृष्ण ने भगवान शिव की पूजा की थी।


इस्कॉन मंदिर

 आधुनिक भक्ति केंद्र, जहाँ भजन, कीर्तन और सत्संग होते हैं।


 वृंदावन में प्रतिदिन भजन, कीर्तन, प्रवचन और धार्मिक आयोजन होते हैं। यहाँ देश-विदेश से साधक, भक्त, पर्यटक आते हैं। मन को शांति और आत्मा को प्रेम का अनुभव होता है।


वृंदावन में क्या करें?

1. मंदिर दर्शन –यहां के विभिन्न मंदिरों में जाकर भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के दर्शन जरूर करें।

2. यमुना स्नान – पवित्र यमुना नदी में स्नान कर आध्यात्मिक शुद्धि का अनुभव अवश्य करें।

3. सत्संग में भाग लें –श्री प्रेमानंद महाराज जी जैसे संतों के प्रवचन सुनें और आशीर्वाद लेना चाहिए।

4. रासलीला – यहाँ कृष्ण-राधा की लीलाओं का मंचन देखने का अवसर मिलता है, जिसमें अपने आप को प्रेम में आनंदित करने में शांति मिलती हैं।

5. प्रसाद और भक्ति भोजन – यहाँ कई स्थानों पर निःशुल्क प्रसाद वितरण होता है, जिसे ग्रहण करने से सारे पाप नष्ट होते हैं।

6. ध्यान और साधना – वृंदावन का वातावरण आत्मिक शांति और ध्यान के लिए अनुकूल है। भक्त को अपनी बात प्रभु को बताने के लिए सुगमता होती हैं।


 कैसे पहुँचें वृंदावन


रेलमार्ग – सबसे अच्छा मथुरा जंक्शन सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है, वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा 15-20 किमी दूरी पर वृंदावन धाम है।


सड़क मार्ग – आगरा, दिल्ली, जयपुर , भरतपुर और अन्य शहरों से बस, टैक्सी या निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।


हवाई मार्ग – निकटतम हवाई अड्डा आगरा है, जबकि दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बड़ा केंद्र है।


 घूमने का सबसे अच्छा समय


अक्टूबर से मार्च – मौसम सुहावना रहता है, यात्रा और दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय होता हैं।


जन्माष्टमी, होली, राधाष्टमी जैसे पर्व विशेष धार्मिक उत्सवों में वृंदावन का माहौल अद्भुत और प्रेममय होता है।


विशेष टिप्स


वृंदावन में धार्मिक स्थानों की मर्यादा का पालन करें।

भीड़ वाले दिनों में पहले से योजना बना कर आए।

किसी भी मंदिर में प्रवेश से पहले जूते बाहर रखें। क्योंकि पूरा वृंदावन धाम है।

यथासंभव साधारण वस्त्र पहनें।

यहां पर प्लास्टिक और कचरा न फैलाएँ।



दर्शन समय (सामान्य)


 प्रातः 6 बजे से दोपहर तक और शाम 4 बजे से रात्रि तक मंदिर खुले रहते हैं।

त्योहारों के समय विशेष आरती और आयोजन होते हैं।

कुछ मंदिरों में मोबाइल व कैमरा ले जाना वर्जित होता है।

यमुना नदी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हुई है। वृंदावन में यमुना के किनारे कई घाट बने हैं जहाँ स्नान, ध्यान, पूजा और भक्ति के आयोजन होते हैं। ये घाट आध्यात्मिक अनुभव और सौंदर्य दोनों देते हैं।

 प्रातःकाल स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है।

 शाम को यमुना आरती देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।

 कई घाटों पर जप, ध्यान, भजन और यज्ञ होते हैं।

 साधु-संत और भक्त यहाँ बैठकर आत्मचिंतन करते हैं।


कुछ विशेष पर्व जो हर साल मनाए जाते हैं 


जन्माष्टमी – यमुना स्नान के साथ विशेष पूजा।

 होली – रंगोत्सव के दौरान घाटों पर विशेष आयोजन।

कार्तिक मास – दीपदान और आरती का विशेष महत्त्व।


 यात्रा सुझाव


स्नान जरूर करना चाहिए और स्नान से पहले स्थानीय नियमों का पालन करें।


यमुना जी के पवित्र घाटों पर साफ-सफाई का ध्यान रखें।


शाम की आरती देखने अवश्य जाएँ – दृश्य अत्यंत दिव्य होता है।


मोबाइल और कैमरा कुछ जगह प्रतिबंधित हो सकता हैं। ऐसी जगह पर अपनी आंखों और मन से दिव्य आनंद ले, हर नजारा कैमरा में कैद करना जरूरी नहीं होता हैं।

धन्यवाद 


मंगलवार, सितंबर 02, 2025

सांवलिया सेठ, sanwliyaji seth tample mandphiya


सांवलिया सेठ भी भगवान श्रीकृष्ण जी का एक प्रसिद्ध रूप है, जिनका मुख्य मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के माण्डफिया गाँव के पास में है। भक्त उन्हें "सांवलिया सेठ" कहते हैं क्योंकि उनका स्वरूप श्याम वर्ण (सांवला) है और उन्हें व्यापारी सेठ की तरह दान-दक्षिणा देने वाला माना जाता है, सेठ जी का प्रमुख मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़-उदयपुर हाईवे पर माण्डफिया, भदेसर और सांवलिया गाँव के बीच स्थित है।
माना जाता हैं कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद अवश्य पूरी होती है।
व्यापारी वर्ग विशेष रूप से सांवलिया सेठ को अपना आराध्य देव मानता है और अपने बिजनेस में सफलता के लिए विशेष पूजा करता है।
इस मंदिर में चढ़ावे में सिर्फ पैसे ही नहीं, बल्कि चांदी-सोना तक अर्पित किया जाता है कहते हैं कि सांवलिया सेठ की प्रतिमा जमीन से प्रकट हुई थी।
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सांवलिया सेठ जी के मंदिर और मूर्ति की कथा इस प्रकार हैं कि 
बहुत समय पहले मेवाड़ में चित्तौड़गढ़ के पास तीन गाँव हैं भदेसर, माण्डफिया और सांवलिया, वहां पर एक किसान खेत में हल जोत रहा था, तभी उसकी हल की नोक ज़मीन में किसी वस्तु से टकराई, जब उसने उस जगह पर ज़मीन खोदी तो वहाँ से भगवान श्रीकृष्ण जी की तीन अति सुंदर मूर्तियाँ मिली, जिसमे से,
एक मूर्ति भदेसर में स्थापित की गई।
दूसरी मूर्ति माण्डफिया में स्थापित की गई।
और तीसरी मूर्ति सांवलिया गाँव में स्थापित की गई।
तब इन्हीं तीनों में से एक मूर्ति "सांवलिया सेठ" के नाम से प्रसिद्ध हुई।
सांवलिया जी के भक्तों का विश्वास है कि जो भी भक्त यहाँ सच्चे मन से आकर अपनी मनोकामना मांगता है, उसकी झोली धन-धान्य और समृद्धि से भर जाती है।
विशेष रूप से व्यापारी वर्ग मानता है कि उनका बिजनेस सांवलिया सेठ की कृपा से ही बढ़ता है।
इसी कारण भक्त प्यार से उन्हें "सेठ" कहकर पुकारते हैं, मानो वे सबके "धनदाता व्यापारी" हों।
ये मंदिर चित्तौड़गढ़–उदयपुर हाईवे पर स्थित है।
यहां हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
यहां हर बार नवरात्र, जन्माष्टमी और अमावस्या के मेलों में भारी भीड़ आती रहती है।
भक्तगण यहाँ अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान स्वरूप अर्पित करते हैं, मानो जैसे सेठ जी "खाता-बही" में एंट्री कर रहे हों।
मान्यता है कि अगर कोई बिजनेस मेन अपना नया व्यापार शुरू करता है और सबसे पहले सांवलिया सेठ जी को "निवेदन" करता है तो उसका व्यापार सफल होता है।
लोग इन्हें अपना "व्यापारिक भगवान" मानते हैं।
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सांवलिया सेठ जी के दर्शन करने का तरीका भी भक्तजन विशेष विधि से करते हैं।
आज हम सांवलिया सेठ जी दर्शन विधि बता रहे हैं 
मंदिर में जाने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए।
सांवलिया जी की प्रसाद मिठाई, फल या मेवा ले सकते हैं। कई भक्त खाता-बही भी साथ ले जाते हैं।
जब आप मंदिर में प्रवेश करते है तो “जय सांवलिया सेठ जी” का जयकारा जरूर लगाएँ।
गर्भगृह में आने पर सांवलिया जी के सामने दोनों हाथ जोड़कर अपनी मनोकामना करें।
पवित्र श्रद्धा से प्रसाद अर्पित करें।
खाता बही वाले भक्त पहले पन्ने पर "श्री सांवलिया सेठ जी" लिखकर व्यापार की शुरुआत करते हैं।
विश्वास है कि इससे व्यापार में उन्नति और लाभ होता है।
फिर अपनी क्षमता अनुसार दान करें नकद, अन्न, चांदी, सोना या कोई वस्तु।
यहाँ दान को "निवेदन" माना जाता है, मानो सेठ जी से हिसाब मिलाया जा रहा हो।
मंदिर में दिनभर आरती होती रहती हैं और आरती के समय दर्शन का महत्व बढ़ जाता है।
जब मनोकामना पूरी होती है तो भक्त पुनः सेठ जी के दरबार में आकर प्रसाद और दान चढ़ाते हैं।
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 सांवलिया सेठ जी मंदिर के दर्शन और आरती का समय कुछ इस प्रकार हैं,
सुबह (प्रातःकालीन दर्शन)
मंगल आरती – सुबह 5:30 बजे
मंगला दर्शन – आरती के बाद
श्रृंगार दर्शन – सुबह 7:00 बजे
राजभोग आरती व दर्शन – सुबह 11:00 बजे
राजभोग दर्शन बंद – 12:00 से 3:30 बजे तक इस समय सेठ जी विश्राम करते हैं।
उठापन दर्शन – शाम 3:30 बजे
भोग आरती व दर्शन – शाम 5:00 बजे
संध्या आरती व दर्शन – 6:30–7:00 बजे
शयन आरती व दर्शन – रात 9:00 बजे
उसके बाद मंदिर के पट बंद हो जाते हैं।

 विशेष अवसरों पर (जैसे जन्माष्टमी, नवरात्र, अमावस्या) दर्शन का समय लंबा होता है और पूरी रात भी खुले रहते हैं।

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