बुधवार, दिसंबर 14, 2016

मैं ऊपर वाला बोल रहा हूँ!

हे जीवात्मा !
मैं आपका (अल्लाह, राम, रहीम, खुदा, भगवान आदि) उपरवाला बोल रहा हूँ, जिसे ध्यान पूर्वक सुनो..!
आज मैं आपसे नाराज हुँ क्योंकि, आप एक दूसरे को मारने पर तुले हो.
तुमने मुझे अलग-अलग नामों, धर्मो, और तो और अलग- अलग स्थानो में भी बाँट दिया हैं.
कोई मुझसे किसी के मरने प्रार्थना करता हैं तो कोई किसी को मारने की.
मेरी कसम खाकर झूठ बोलते हो.
जब अपने गलत इरादों मे कामयाब नही होते हो तो मुझे दोसी बनाते हो.
खेर जो भी हो, अब सुनो…
में कौन और क्या हुँ ?
मेरा काम आपका ध्यान रखना हैं, रोकना नही.! आप क्या कर रहे हो क्या नही, आप गलत हो या सही,सब मुझे मालूम हैं !
आप जो मुझे ढूँढ रहे हो.(मक्का मदिना, हरिद्वार, आदि) वहाँ मैं नही हुँ,
आप जो मेरे लिये स्थान (मंदिर,मस्जिद,गुरुद्­वारा या चर्च)बनाते हैं, घर, गाँव, शहर मे, मैं उसमे नही रह सकता.क्योंकि वो मेरे नीचे के लोगों का घर हैं, जो मेरे करीब आना चाहते हैं.!
कुछ लोग स्वर्ग-नर्क जन्नत हुरें की बाते करते हैं वो उनके बताये तरिके से मैं नही देता, यह बात दिमाग में रख लेना.!
कुछ लोगों नें अपने जैसा दिखाने के लिये आपके शरीर के अन्गोँ में फेरबदल कर दिया, जो मुझे बर्दाशत नही,
कुछ लोग अपने आप को मेरा स्वरूप मानकर महिमा मंडित हो रहे हैं, भोले जीव का हनन कर रहे हैं, उनका चेहरा मुझे याद हैं .!
मैं आ गया हुँ, लेकिन आप जब मुझे देखने के योग्य हो जायेंगे. तब आपके सामने हाजिर हो जाऊँगा.! कई जीव मुझ तक पहुँच चुके हैं, जिन्हे लश्कर बनाना पसंद नही था.!
कुछ जीव मैं हुँ, यह बात मानते भी नही, वो उनसे भी साधारण जीव हैं जो मानकर भी नही समझ रहे हैं.!अत; वो सरल स्वभाव वाले मेरे अपने हैं !
आपको बहलाने वाले बहुत हैं, मेरे पास भेजने वाला कोई नही.!
मेरा नाम लेकर अपराध करने वाले भी बहुत हैं, लेकिन मेने उसको भी अधिकार की सीमा दी हैं.!
अपने से कमजोर का सहारा बनना छोड कर उसके उपर साहस दिखा रहे हैं अत्याचार कर रहे हैं उनका समय विपरीत हैं, पृथ्वी पर रेखा बनाकर दोनो तरफ से लड़ रहे हो. अपने पूर्वजो को जाते हुए देखा नही था ?

मैं कहाँ हुँ यह मत ढूँढो, मैं क्या चाहता हूँ यह सोच.!
तुम्हारे सोचने के विपरीत हो जाता हैं कभी कभी, क्योंकि मेरी मर्जी और हैं. मेरी मर्जी से करोगे तो तुम्हारी मर्जी में पूरी करूँगा.!
मैं कौन हुँ, यह मत सोच.!
मैं जो भी हुँ, जरूर हूँ, एक हूँ ,आदि हुँ, अंत हुँ और जब चारों तरफ से उदास होकर जिसे याद करते हो, वो मैं ही हुँ, कोई और नही.
और तुम जो अलग-अलग समुह बनाकर खोज रहे हो, उससे आप कहाँ तक पहुँचे यह तो आपको भी शांत मन से विचार करने पर पता चल जायेगा.!
मेरा रिस्ता आपके शरीर से तो उस दिन ही खत्म हो गया, जिस दिन आपको दे दिया, अब तो उसके अंदर रखी हुई वस्तु की परीक्षा करनी हैं, कि दोबारा कहाँ भेजुं.
यह शब्द मेरे हैं, मैं किससे लिखवा रहा हूँ, कब लिख रहा हुँ, जानने की कोशिश मत करना.
क्योंकि उसे खुद को मालूम नही.!
और आप मुझे फिर खोजने ना निकल जाना,
यदि आपको यकिन ना हो तो, एक शांत स्थान में बैठकर या खडे होकर भी, मेरे कहे शब्दो का स्मरण करना, जवाब मिल जायेगा.
और जवाब मिल जायें तो, वो ही करना जो मुझे अच्छा लगे..!
मैं वो ही दूँगा जो आपको अच्छा लगेगा..!

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