शनिवार, सितंबर 20, 2025

राजस्थान की यात्रा :- महलों से रेत तक घूमने का आनंद

  अगर आप भारत की संस्कृति, आस्था और यात्रा स्थलों के बारे में और भी रोचक जानकारी पढ़ना चाहते हैं, तो मेरे Hindidharma Blog से ज़रूर जुड़ें। यहाँ आपको धार्मिक स्थानों, तीर्थ यात्राओं और भारतीय परंपराओं से जुड़ी और अनोखी जानकारियाँ मिलेंगी।

राजस्थान: रंग, संस्कृति और वीरों की धरती

भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है राजस्थान, क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य है, इसकी राजधानी जयपुर हैं।
यह राज्य अपनी वीर गाथाओं, शौर्य, संस्कृति , खान पान, किले, महलों और रंग-बिरंगी परंपराओं के लिए पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। रेगिस्तान की धरती, थार का मरुस्थल, मरुधर, रंगीलो राजस्थान, मारवाड़ और राजपुताना कहलाने वाला राजस्थान हर किसी को अपने किलों, हवेलियों , स्वादिष्ट भोजन, वेशभूषा और लोककलाओं से मोह लेता है।

राजस्थान का इतिहास बहुत पुराना और विशेष हैं।

राजस्थान की पहचान उसके वीर राजपूत शासकों , भामाशाह , साधु संतो, लोकदेवता और उनकी गाथाओं से है। महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा, सूरजमल , जयमल, कल्ला राठौड़ जैसे कई योद्धाओं , मीराबाई, कर्मा बाई, रूपादे जैसी भक्ति, ने इस भूमि को गौरवमयी बनाया। यहाँ के किले और महल आज भी उनके साहस और पराक्रम की कहानी कहते हैं। यहां पर घूमने आने वाले पर्यटक, राजस्थानियों का स्वागत, सेवा और प्रेम देख कर मोहित हो जाते हैं ।
राजस्थान में पर्यटकों को संबोधित करते कुछ शब्द भी विश्व प्रसिद्ध हैं जैसे है "राम राम सा" , "घणी खम्मा सा" , "पधारो सा" , "जी हुक्म" , "जी सा" , "हां सा"

प्रमुख दर्शनीय स्थल

1. जयपुर (पिंक सिटी) – हवा महल, आमेर किला , सिटी पैलेस, जंतर मंतर, जल महल, नाहरगढ़ का किला, गलता जी मंदिर, जयगढ़ का किला, बिरला मंदिर और पन्ना मीना का कुंड देखने के लिए अच्छी जगह है।


2. उदयपुर (झीलों की नगरी) सिटी पैलेस, पिछोला झील, सज्जनगढ़ पैलेस, जगदीश मंदिर, बागौर की हवेली, एकलिंग जी मंदिर, और फतहसागर झील यहाँ के आकर्षण हैं।


3. जैसलमेर (थार रेगिस्तान का प्रवेश द्वार) सोनार का स्वर्णिम किला, पटवा की हवेली, गढ़ीसर झील, बड़ा बाग, सम डेजर्ट, कुलधारा विलेज, लोंगेवाला, तनोट माता मंदिर और ऊँट सफारी यहाँ खास है।


4. जोधपुर (नीली नगरी) (सूर्यनगरी) मेहरानगढ़ किला , उम्मेद भवन पैलेस, जसवंत थड़ा, मंडोर गार्डन, कायलाना झील और घंटाघर बाजार इसकी शान है।


5. चित्तौड़गढ़ (इतिहास की गवाह) यहाँ का किला और पद्मिनी महल, विजय स्तंभ, जौहर कुंड, विश्व प्रसिद्ध है।

6. राजस्थान बहुत बड़ा है और राजस्थान में हर सौ मीटर पर एक दर्शनीय स्थल या चौंकाने वाला नजारा मिल जाता है, हमारी एक पोस्ट में सभी स्थानों का वर्णन संभव नहीं हैं इसलिए आप अगली पोस्ट में राजस्थान के बारे में अधिक जानकारी पा सकेंगे।

राजस्थान की संस्कृति

लोक नृत्य और संगीत – घूमर, कालबेलिया, चकरी नृत्य और मांड गायन यहाँ की पहचान हैं।

पारंपरिक वेशभूषा – घाघरा-चोली, चुनरी और राजस्थानी पगड़ी रंग-बिरंगे जीवन को दर्शाते हैं।

मेले और उत्सव – पुष्कर मेला, मरु उत्सव, गंगौर और तीज यहाँ की संस्कृति का हिस्सा हैं।


राजस्थानी व्यंजन

राजस्थान का खाना उतना ही प्रसिद्ध है जितनी इसकी संस्कृति।

दाल-बाटी-चूरमा

गट्टे की सब्ज़ी

केर-सांगरी

मिर्ची बड़ा

घेवर (मिठाई)


क्यों खास है राजस्थान?

रेगिस्तान की रेत, किले-महल, लोकगीत, ऊँट की सवारी और राजस्थानी मेहमाननवाज़ी—ये सब मिलकर राजस्थान को अद्वितीय बनाते हैं। यहाँ की हर गली, हर रेत का कण इतिहास और परंपरा की कहानी सुनाता है।
✨ अगर आप भारत की असली संस्कृति और शौर्य को महसूस करना चाहते हैं, तो राजस्थान की यात्रा जीवनभर यादगार बन जाएगी।
राजस्थान केवल एक राज्य नहीं, बल्कि यह भारत की शान, परंपरा और इतिहास की जीवंत तस्वीर है। यहाँ के रेगिस्तान, किले-महल, झीलें और लोक संस्कृति पर्यटकों को हमेशा आकर्षित करते हैं।

राजस्थान कब जाएँ?

अक्टूबर से मार्च: घूमने का सबसे अच्छा समय, जब मौसम ठंडा और सुहावना होता है।

अप्रैल से जून: गर्मी का मौसम, थार रेगिस्तान बहुत गर्म हो जाता है।

जुलाई से सितंबर: बरसात का मौसम, हरियाली का अलग ही आनंद देखने को मिलता है।


यात्रा के टिप्स
राजस्थान में घूमते हुए सुरक्षा की चिंता न करें और प्रेम से पेश आया करें, यहां के लोग बहुत अच्छे हैं।
रेगिस्तान की यात्रा करते समय पानी और हल्के कपड़े साथ रखें क्योंकि यहां का वातावरण आपके लिए थोड़ा असहज हो सकता हैं।
किलों और महलों के टिकट ऑनलाइन बुक कर सकते हैं, बस, टैक्सी, खाना और होटल भी ऑनलाइन बुक कर सकते हैं ।
स्थानीय हस्तशिल्प, हैंडीक्राफ्ट वस्तुएं और पगड़ी ज़रूर खरीदें।
लोकनृत्य और लोकसंगीत का आनंद लेना न भूलें।


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बुधवार, सितंबर 17, 2025

प्रेमानंद जी महाराज, Premanand Maharaj


राधा राधा, 
श्री जी के स्वरूप विश्व के करुणामयि और पूजनीय संत श्री 
प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज, वर्तमान समय के एक लोकप्रिय संत, प्रेरक वक्ता और आध्यात्मिक गुरु हैं।
 महाराज जी मुख्य रूप से सबको भक्ति, प्रेम, सेवा और सरल जीवन का संदेश देते हैं। प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन देशभर में लाखों लोगों द्वारा सुने जाते हैं और इनकी शिक्षाएँ समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का काम कर रही हैं।

आज हम महाराज जी के जीवन परिचय और हमें मिली जानकारी आप तक रख रहे हैं, जो पूर्ण रूप या शत प्रतिशत भी हो सकती हैं ।

श्री प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का जन्म 30 मार्च 1969 को कानपुर जिले के सरसौल ब्लॉक में अखरी गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ है।
महाराज जी का बचपन नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्डेय हैं।
महाराज जी ने 13 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और बाद में श्री गौरंगी शरण जी महाराज से दीक्षा ले ली।
वे वैष्णव परंपरा से जुड़े संत हैं और वर्तमान में श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट के संस्थापक हैं।
महाराज जी के पास कोई निजी संपति नहीं हैं यहां तक कि उनके पास कोई बैंक अकाउंट भी नहीं हैं।
पिछले 18, 20 सालों से महाराज जी की दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं। उन्हे ADPKD नामक बीमारी हैं, जिसके कारण किडनियां काम करना बंद कर चुकी हैं और उन्हें नियमित डायलिसिस पर निर्भर रहना पड़ता हैं।

महाराज जी को बचपन से ही भगवान भजन में गहरी रुचि थी और महाराज जी ने सांसारिक जीवन से अधिक आध्यात्मिक जीवन को प्राथमिकता दी हैं।
महाराज जी ने काफी संतों की सेवा की, सभी शास्त्रों का अध्ययन किया और धीरे-धीरे लोगों को नाम जप, प्रेम, करुणा और आत्मज्ञान की राह दिखाने लगे हैं।

महाराज जी का उद्देश्य धर्म को केवल अनुष्ठानों तक सीमित न रखकर जीवन में प्रेम, समर्पण और सेवा का विस्तार करना है। नाम जप द्वारा मोक्ष मार्ग को प्राप्त करने के प्रयत्न करना चाहिए।

महाराज जी के उपदेशों के मुख्य बिंदु

 नाम जप ही भगवान तक पहुँचने का मार्ग है।
 किसी की भी सेवा बिना अहंकार के करनी चाहिए।
प्राणी को हर परिस्थिति में धैर्य और विश्वास रखना चाहिए।
 भक्ति केवल मंदिर या पूजा तक सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि जीवन के हर कार्य में प्रकट होनी चाहिए।
 जीव को अपने मन को शांत कर ईश्वर की शरण में जाने से दुःख दूर होते हैं।
महाराज जी के प्रवचनों की विशेषताएँ

सरल और हिंदी भाषा में गहरे आध्यात्मिक शब्दों और अर्थ को समझाते हैं।

लोगों की जीवन में आने वाली मानसिक और शारीरिक समस्याओं का समाधान दे देते हैं।

मनुष्य को परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए सकारात्मक सोच विकसित करवा देते हैं।

युवाओं को ब्रह्मचर्य पालन, संयम, ध्यान और सेवा की ओर प्रेरित करते हैं।

ऑनलाइन प्रवचन, पुस्तकों और वीडियो के माध्यम से लाखों लोग उनसे जुड़ चुके हैं, जो महाराज जी के ज्ञान का लाभ उठा रहे हैं।

 प्रेमानंद महाराज जी से जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग

एक सुंदर प्रसंग महाराज जी की करुणा, सेवा और निस्वार्थ भाव को दर्शाता है। यह प्रसंग अनेक श्रद्धालु सुनाते हैं,

एक बार श्री प्रेमानंद महाराज जी एक सत्संग के बाद उस गाँव के कुछ लोगों से मिलने पहुँचे थे । वहाँ एक वृद्ध महिला महाराज जी के पास आई। महिला ने साधारण कपड़े पहने थे, चेहरा भी बहुत थका हुआ, आँखों में चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। उसने कहा 
“महाराज जी, मेरे घर में बहुत संकट है। धन नहीं, स्वास्थ्य खराब रहता हैं। मन अशांत होता है। आप बताओ मैं क्या करूँ?”

महाराज जी ने उसका चेहरा देखा, पर कोई बड़ा उपदेश नहीं दिया। वे मुस्कुराए और उस महिला से बोले

“माँ, सबसे पहले अपने मन को प्रेम से भरिए। सेवा करें, किसी को मदद दीजिए। जब आप दूसरों के लिए दीपक जलाएँगी, तभी आपके जीवन में भी प्रकाश आएगा। संकट आता है, पर सेवा से मन मजबूत होता है।”

उन्होंने उसे बैठाकर भोजन कराया, साथ बैठकर बातें कीं और रोज़ थोड़ा समय अपने परिवार के साथ बैठकर प्रार्थना करने का सुझाव दिया।

कुछ महीनों बाद ही, वही महिला गाँव में सेवा कार्यों में सबसे अग्रणी बन गई। वह बीमारों की देखभाल करने लगी, बच्चों को पढ़ाने लगी और घर-घर जाकर आशा का संदेश देने लगी। धीरे-धीरे उसका परिवार संकट से उबर गया। लोगों ने कहा –
“महाराज जी ने हमें कोई बड़ा चमत्कार नहीं दिखाया, बस प्रेम और सेवा का रास्ता बताया – वही सबसे बड़ा चमत्कार है!”

इस प्रसंग से मिलने वाली सीख इस प्रकार हैं 

सेवा का मार्ग सबसे शक्तिशाली आध्यात्मिक उपाय है।
संकट में धैर्य और प्रेम ही मन को संभालते हैं।
 बाहरी सहायता से पहले भीतर प्रेम और विश्वास का दीप जलाना ज़रूरी है।
 जो स्वयं दुख में हो, वह भी सेवा करके दूसरों का सहारा बन सकता है।
महाराज जी ने अभी जीवन प्रयन्त वृंदावन वास ले लिया है इसलिए, अभी वो वृंदावन छोड़कर बाहर नहीं जा सकतें हैं।

प्रेमानंद महाराज जी से मिलने के लिए आपको वृंदावन स्थित उनके आश्रम श्री राधाकेली कुंज जाना होगा, जो परिक्रमा रोड पर स्थित है और भक्तिवेदांत हॉस्पिटल के सामने है।
और दूसरा आश्रम श्री हित राधा कृपा धाम, यह भी वृंदावन में है।

महाराज जी के दर्शन की प्रक्रिया निम्नलिखित है:

दर्शन के लिए टोकन कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

समय: प्रत्येक दिन सुबह 9:30 बजे से पहले आश्रम में पहुंचें।
स्थान: राधाकेली कुंज आश्रम के कार्यालय में जाएं।
आवश्यक दस्तावेज़ में अपने साथ आधार कार्ड अवश्य लाएं, क्योंकि टोकन प्राप्त करने के लिए यह अनिवार्य है।
टोकन की प्रक्रिया, आधार कार्ड दिखाने के बाद आपको अगले दिन के दर्शन के लिए टोकन दिया जाएगा। ध्यान दें कि दर्शन के लिए दो दिन पहले टोकन प्राप्त करना आवश्यक है। 

 दर्शन और एकांत वार्ता के लिए,

"एकांत वार्ता " यदि आप व्यक्तिगत रूप से महाराज जी से संवाद करना चाहते हैं, तो सुबह 6:30 बजे आश्रम पहुंचें। इस दौरान आप आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।

सामूहिक दर्शन, सामूहिक दर्शन के लिए सुबह 7:30 बजे आश्रम में उपस्थित रहें।

सत्संग और कीर्तन, सत्संग सुबह 4:15 बजे और कीर्तन 6:30 बजे आयोजित होते हैं। 

 आप आश्रम तक कैसे आ सकते हैं ?

पता: श्री राधाकेली कुंज आश्रम, परिक्रमा रोड, वृंदावन, उत्तर प्रदेश।

निकटतम स्थल: आश्रम इस्कॉन मंदिर के पास स्थित है।

रात्रि दर्शन: यदि आप टोकन प्राप्त नहीं कर पाते हैं और दर्शन करना जरूरी है तो, परिक्रमा मार्ग पर रात्रि में दर्शन कर सकते हैं, जो रात 2:30 बजे के बाद हो सकते हैं। लाखों लोग परिक्रमा मार्ग पर खड़े हो कर महाराज जी के दर्शन करते हैं।

" महत्वपूर्ण जानकारी "
प्रेमानंद महाराज जी से मिलने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है; यह सेवा निःशुल्क है।
सत्संग में भागीदारी, सत्संग में भाग लेने के लिए भी आपको टोकन की आवश्यकता होगी, जिसे सुबह 9:30 बजे के बाद प्राप्त किया जा सकता है।

सुरक्षा और अनुशासन, आश्रम में मोबाइल फोन और कैमरा का उपयोग प्रतिबंधित है, और नटखट बच्चों को साथ लाने की अनुमति नहीं है।

महाराज जी से दीक्षा लेने वाले भक्तों का मुख्य मंत्र 

"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। 
प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:।।"

मंत्र का अर्थ
"हे वासुदेव, आप ही परमात्मा स्वरूप श्री कृष्ण हैं। मैं आप पर वंदन करता हूँ, सभी क्लेशों के नाश करने वाले गोविन्द, आपको बार-बार नमन है"।।

जाप कैसे करे ?
इस मंत्र का प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट जाप करने की सलाह देते हैं।
इसके साथ ही "कृष्ण, कृष्ण गोविंद, राधा राधा" मंत्र का भी जप करने की सलाह देते हैं।
बोलो राधा राधा, 
राय कमेंट बॉक्स में लिख दीजिए।


Rawal Mallinath Mharaj, रावल मल्लिनाथ महाराज, तिलवाड़ा मेला


(यह फ़ोटो पुस्तक के मुख्य पृष्ठ का हो सकता हैं, इंटरनेट द्वारा प्राप्त)

दोस्तों आज हम बात कर रहे हैं, राव मल्लिनाथ जी के बारे में,
संत श्री रावल मलिनाथ जी राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता और संत माने जाते हैं। उन्हें विशेष रूप से मारवाड़–मालवा क्षेत्र में पूजा जाता है। उनके मंदिरों पर देश के सभी स्थानों से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
रावल मलिनाथ जी को वीर, तपस्वी और लोककल्याणकारी संत के रूप में पूजा जाता है।

प्रचलित लोककथाओं के अनुसार वे क्षत्रिय राजपूत कुल से थे , मेवानगर में राज करते थे, बाद में राज्य, वैभव और सुख छोड़कर तपस्या में लग गए।

इनका पूरा जीवन त्याग, सेवा और परमार्थ का प्रतीक माना जाता है।

इन्हें “रावल” की उपाधि मिली , जो क्षत्रिय राजपूत परंपरा में बड़े सम्मान का शब्द है।

इनका मुख्य मंदिर

मलिनाथ मंदिर, तिलवाड़ा जिला बाड़मेर , में जो अभी नया जिला बालोतरा, राजस्थान में सबसे प्रसिद्ध है।
यहाँ हर साल बहुत बड़ा मेला लगता है, जहाँ हजारों , टूरिस्ट और श्रद्धालु आते हैं।

स्थानीय ग्रामीणों के बीच यह माना जाता है कि मलिनाथ जी की कृपा से रोग, संकट और दु:ख दूर होते हैं।

 ईनके साथ काफी मान्यताएँ भी जुड़ी हुई हैं,

 वे करुणामयी थे और सबकी मदद करते थे।
 रोगी, निर्धन और पीड़ित उनके राज दरबार में आशीर्वाद पाने आते थे।
इनकी आध्यात्मिक साधना से क्षेत्र में शांति और समृद्धि बनी रही।
 लोग इन्हें वीरता और तप का आदर्श मानते हैं।

धार्मिक महत्व से भी परम पूजनीय हैं।

लोकगीतों, भजनों और कथाओं में रावल मलिनाथ जी का उल्लेख मिलता है।

उन्हें अन्य संतों के साथ लोक-धार्मिक परंपरा में पूजते हैं।

ग्रामीण जीवन में उनकी उपस्थिति आज भी सामाजिक एकता और धार्मिक आस्था का प्रतीक है।

रावल मलिनाथ जी की कथा 

रावल मलिनाथ जी से जुड़ी कई लोककथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कथा इस प्रकार है, जो राजस्थान के गाँव-गाँव में श्रद्धा से सुनाई जाती है:

बहुत समय पहले मारवाड़ क्षेत्र में एक वीर क्षत्रिय कुल में रावल मलिनाथ जी का जन्म हुआ। वे शौर्य, पराक्रम और ऐश्वर्य से संपन्न थे, परंतु वैभव के बावजूद उनके हृदय में वैराग्य जागा। उन्होंने देखा कि धन, राज्य, सत्ता – सब क्षणिक है और मनुष्य का वास्तविक कल्याण सेवा, तप और त्याग में है।
उन्होंने परिवार और राजसी सुख छोड़ दिए और तपस्या के लिए जंगलों की ओर चल पड़े। कहते हैं कि वे कठिन साधना करते थे – उपवास, ध्यान, योग और जप से आत्मशुद्धि करते रहे। उनके पास कोई भोग-विलास नहीं था, केवल सत्य, सेवा और करुणा का मार्ग।

एक बार एक गाँव में महामारी फैली। लोग भयभीत थे, न दवा, न उपचार। तब रावल मलिनाथ जी वहाँ पहुँचे। उन्होंने न कोई बड़ा यज्ञ किया, न कोई चमत्कार दिखाया। बस प्रेम से रोगियों की सेवा की, भोजन बाँटा, मनोबल बढ़ाया। विश्वास किया जाता है कि उनके स्पर्श और आशीर्वाद से रोगी स्वस्थ होने लगे। लोग उन्हें भगवान का रूप मानकर पूजने लगे।

धीरे-धीरे उनका नाम दूर-दूर तक फैल गया। वे सबके लिए समान न किसी का जाति पूछते, न धन। जो भी श्रद्धा से आता, उसे आशीर्वाद देते। उनके तप और सेवा की महिमा से पूरा क्षेत्र शांति और समृद्धि की ओर बढ़ा।

आज भी तिलवाड़ा और आसपास के गाँवों में लोग उनके मेले में जाकर अपने संकट, रोग, विवाह, संतान, सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। उनकी पूजा में सरलता, करुणा और सेवा का आदर्श मुख्य माना जाता है।

 इस कथा से मिलने वाले संदेश यह हैं कि,
 बाहरी वैभव से अधिक अंतर्मन की शुद्धि महत्वपूर्ण है।
 सेवा, करुणा और निस्वार्थ भाव से बड़ी से बड़ी समस्या दूर हो सकती है।
 संकट के समय धैर्य और विश्वास ही सबसे बड़ा सहारा है।
 समाज की एकता और सद्भाव से क्षेत्र में सुख और शांति आती है।
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शनिवार, सितंबर 06, 2025

आज चंद्रग्रहण हैं, today chandragrhn, 7 सितम्बर 2025

आज रात यानि, 7 सितंबर 2025 रविवार को भारत में चंद्र ग्रहण लगेगा। बाडमेर, जोधपुर सहित भारत के कई हिस्सों में दिखेगा।

बाड़मेर में समय भारतीय समयानुसार

पहला चरण में हल्का अंधेरा, रात 8:58 बजे से

आंशिक ग्रहण, रात 9:57 बजे से

पूर्ण ग्रहण, रात 11:42 बजे से

पूर्ण ग्रहण समाप्त , रात 1:26 बजे 8 सितंबर

समाप्त: सुबह 2:25 बजे 8 सितंबर


सूतक काल का समय 

आज दोपहर 12:57 बजे से प्रारंभ होगा। इस समय के दौरान पूजा-पाठ और शुभ कार्यों को न करने की सलाह दी जाती है।
केवल चंद्र ग्रहण को आप खुले आसमान में, बिना किसी विशेष उपकरण के देख सकते हैं, सूर्य ग्रहण को नहीं।

आज यानी 7 सितंबर 2025 को भारत में पूर्ण चंद्र ग्रहण Blood Moon होगा। यह खगोलीय घटना रात के समय चंद्रोदय के बाद घटित होगी और भारत सहित एशिया, यूरोप, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में दिखाई दे सकती हैं।
कुल मिलाकर, यह ग्रहण लगभग 3 घंटे और 28 मिनट तक चलेगा।
सूतक काल या अशुभ समय हमेशा ग्रहण के करीब 9 घंटे पहले से शुरू होता है, जो कि आज दोपहर 12:57 बजे से प्रारंभ हो जायेगा।
साफ आकाश और कम प्रदूषण वाले स्थानों पर इसे देखना सर्वोत्तम होगा। यदि आप इसे आंखों से नहीं देख सकते, तो कई प्लेटफ़ॉर्म जैसे The Virtual Telescope Project और Time and Date पर इसे लाइव किया जाएगा तो, वहां से देख सकते हैं।
यह ग्रहण कुंभ राशि के पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में हो रहा है, जो कुछ राशियों पर विशेष प्रभाव दिखाएगा।
वृषभ, मिथुन, सिंह, तुला और कुम्भ राशियों के जातकों को सावधानी बरतने की जरूरत है , विशेषकर स्वास्थ्य, परिवार और करियर के मामलों में। 
मेष, वृषभ, कन्या और धनु राशियों के लिए यह ग्रहण अच्छा परिणाम ला सकता है, करियर मे उन्नति और वित्तीय लाभ। 
ग्रहण के समय देवी-देवताओं की मूर्तियों को गंगाजल से स्नान कराएं।
ग्रहण के बाद घर में शुद्धि के लिए गंगाजल का छिड़काव करें।
ध्यान, पूजा और दान जैसे शुभ कार्य जरूर करें।

मंगलवार, सितंबर 02, 2025

सांवलिया सेठ, sanwliyaji seth tample mandphiya


सांवलिया सेठ भी भगवान श्रीकृष्ण जी का एक प्रसिद्ध रूप है, जिनका मुख्य मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के माण्डफिया गाँव के पास में है। भक्त उन्हें "सांवलिया सेठ" कहते हैं क्योंकि उनका स्वरूप श्याम वर्ण (सांवला) है और उन्हें व्यापारी सेठ की तरह दान-दक्षिणा देने वाला माना जाता है, सेठ जी का प्रमुख मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़-उदयपुर हाईवे पर माण्डफिया, भदेसर और सांवलिया गाँव के बीच स्थित है।
माना जाता हैं कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद अवश्य पूरी होती है।
व्यापारी वर्ग विशेष रूप से सांवलिया सेठ को अपना आराध्य देव मानता है और अपने बिजनेस में सफलता के लिए विशेष पूजा करता है।
इस मंदिर में चढ़ावे में सिर्फ पैसे ही नहीं, बल्कि चांदी-सोना तक अर्पित किया जाता है कहते हैं कि सांवलिया सेठ की प्रतिमा जमीन से प्रकट हुई थी।
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सांवलिया सेठ जी के मंदिर और मूर्ति की कथा इस प्रकार हैं कि 
बहुत समय पहले मेवाड़ में चित्तौड़गढ़ के पास तीन गाँव हैं भदेसर, माण्डफिया और सांवलिया, वहां पर एक किसान खेत में हल जोत रहा था, तभी उसकी हल की नोक ज़मीन में किसी वस्तु से टकराई, जब उसने उस जगह पर ज़मीन खोदी तो वहाँ से भगवान श्रीकृष्ण जी की तीन अति सुंदर मूर्तियाँ मिली, जिसमे से,
एक मूर्ति भदेसर में स्थापित की गई।
दूसरी मूर्ति माण्डफिया में स्थापित की गई।
और तीसरी मूर्ति सांवलिया गाँव में स्थापित की गई।
तब इन्हीं तीनों में से एक मूर्ति "सांवलिया सेठ" के नाम से प्रसिद्ध हुई।
सांवलिया जी के भक्तों का विश्वास है कि जो भी भक्त यहाँ सच्चे मन से आकर अपनी मनोकामना मांगता है, उसकी झोली धन-धान्य और समृद्धि से भर जाती है।
विशेष रूप से व्यापारी वर्ग मानता है कि उनका बिजनेस सांवलिया सेठ की कृपा से ही बढ़ता है।
इसी कारण भक्त प्यार से उन्हें "सेठ" कहकर पुकारते हैं, मानो वे सबके "धनदाता व्यापारी" हों।
ये मंदिर चित्तौड़गढ़–उदयपुर हाईवे पर स्थित है।
यहां हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
यहां हर बार नवरात्र, जन्माष्टमी और अमावस्या के मेलों में भारी भीड़ आती रहती है।
भक्तगण यहाँ अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान स्वरूप अर्पित करते हैं, मानो जैसे सेठ जी "खाता-बही" में एंट्री कर रहे हों।
मान्यता है कि अगर कोई बिजनेस मेन अपना नया व्यापार शुरू करता है और सबसे पहले सांवलिया सेठ जी को "निवेदन" करता है तो उसका व्यापार सफल होता है।
लोग इन्हें अपना "व्यापारिक भगवान" मानते हैं।
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सांवलिया सेठ जी के दर्शन करने का तरीका भी भक्तजन विशेष विधि से करते हैं।
आज हम सांवलिया सेठ जी दर्शन विधि बता रहे हैं 
मंदिर में जाने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए।
सांवलिया जी की प्रसाद मिठाई, फल या मेवा ले सकते हैं। कई भक्त खाता-बही भी साथ ले जाते हैं।
जब आप मंदिर में प्रवेश करते है तो “जय सांवलिया सेठ जी” का जयकारा जरूर लगाएँ।
गर्भगृह में आने पर सांवलिया जी के सामने दोनों हाथ जोड़कर अपनी मनोकामना करें।
पवित्र श्रद्धा से प्रसाद अर्पित करें।
खाता बही वाले भक्त पहले पन्ने पर "श्री सांवलिया सेठ जी" लिखकर व्यापार की शुरुआत करते हैं।
विश्वास है कि इससे व्यापार में उन्नति और लाभ होता है।
फिर अपनी क्षमता अनुसार दान करें नकद, अन्न, चांदी, सोना या कोई वस्तु।
यहाँ दान को "निवेदन" माना जाता है, मानो सेठ जी से हिसाब मिलाया जा रहा हो।
मंदिर में दिनभर आरती होती रहती हैं और आरती के समय दर्शन का महत्व बढ़ जाता है।
जब मनोकामना पूरी होती है तो भक्त पुनः सेठ जी के दरबार में आकर प्रसाद और दान चढ़ाते हैं।
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 सांवलिया सेठ जी मंदिर के दर्शन और आरती का समय कुछ इस प्रकार हैं,
सुबह (प्रातःकालीन दर्शन)
मंगल आरती – सुबह 5:30 बजे
मंगला दर्शन – आरती के बाद
श्रृंगार दर्शन – सुबह 7:00 बजे
राजभोग आरती व दर्शन – सुबह 11:00 बजे
राजभोग दर्शन बंद – 12:00 से 3:30 बजे तक इस समय सेठ जी विश्राम करते हैं।
उठापन दर्शन – शाम 3:30 बजे
भोग आरती व दर्शन – शाम 5:00 बजे
संध्या आरती व दर्शन – 6:30–7:00 बजे
शयन आरती व दर्शन – रात 9:00 बजे
उसके बाद मंदिर के पट बंद हो जाते हैं।

 विशेष अवसरों पर (जैसे जन्माष्टमी, नवरात्र, अमावस्या) दर्शन का समय लंबा होता है और पूरी रात भी खुले रहते हैं।

शुक्रवार, अगस्त 01, 2025

Tsunami russia सुनामी और भूकंप कैसे आते हैं?


Tsunami सुनामी एक विशाल समुद्र की लहर होती है, जो किसी कारण समुद्र के अंदर से अचानक और बड़े पैमाने पर पानी के विस्थापन या जगह परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। ऐसी लहरें बहुत तेज़ गति से जो, कभी-कभी 800 किमी/घंटा तक से भी चल सकती हैं और जब यह इतनी विक्राल लहर तट पर पहुँचती हैं तो बहुत भारी तबाही मचाती हैं।

सुनामी लहरों के कुछ मुख्य कारण होते हैं जिनसे यह उत्पन होती हैं 

जैसे ज़्यादातर लहरे समुद्र के तल के नीचे टेक्टोनिक प्लेट्स के किसी जगह से खिसकने से आती हैं।
या समुद्री ज्वालामुखी होती हैं उसके फटने से भी सुनामी लहर आ सकती है।
या फिर समुद्र के अंदर या किनारे के पास बड़े पहाड़ की मिट्टी और चट्टानों के गिरने से भी सुनामी का रूप ले सकती हैं।
कभी किसी उल्कापिंड के गिरने से भी सुनामी लहर आ सकती हैं, हैं तो बहुत दुर्लभ, लेकिन संभव हैं।
कुछ लहरे समुद्र के बीच में बहुत लंबाई में होती हैं और उनकी ऊँचाई कम होती है, इसलिए वो नज़र नहीं आतीं हैं।
कभी यह लहरे किनारे के पास पहुँचते-पहुँचते धीमी होकर ऊँचाई में बहुत बढ़ भी जाती हैं।
और कभी तो, यह पानी को जमीन पर कई किलोमीटर अंदर तक ले जाकर सब कुछ बहा सकती है।
इसलिए इनका सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
ऐसी स्थिति में हमें सुनामी से बचाव के उपाय हमेशा करने चाहिए।
देश या सरकार के सुनामी चेतावनी प्रणाली पर ध्यान देना चाहिए।
यदि हम समुद्र के निकट हैं तो,अगर समुद्र का पानी अचानक पीछे हट जाए, तो तुरंत ऊँचाई वाले स्थान पर चले  जाना चाहिए।
किनारे वाले इलाकों में आपातकालीन निकासी मार्ग की हमेशा जानकारी रखना चाहिए।

आपको समझने के लिए मैं सुनामी पर एक सुंदर चित्र और उसके आने के कारण को दिखा रहा हूं।

29 July 2025 को russia के Kamchatka Peninsula के पास एक शक्तिशाली 8.8 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था, तब भी सुनामी का खतरा बढ़ गया था।
इस भूकंप के समय भी रूस के Severo‑Kurilsk क्षेत्र में 5 मीटर तक की ऊँची लहरें देखी गईं ।
तब आसपास की तटीय आबादी को खाली कराया गया, ज्यादातर लोग सुरक्षित निकाले गए ।
जापान में भी Hokkaido and Kuji Port पर भी लगभग 1.5 मीटर की लहरें आई थीं।
हवाई, अलास्का, अमेरिका का पश्चिमी तट, और फ्रेंच पोलिनेशिया तक चेतावनी जारी थीं, लेकिन लहरें अपेक्षाकृत छोटी रहीं।
कुल मिलाकर, अधिकतम उत्तरी किनारों पर कम से कम नुकसान हुआ, जैसेकि Crescent City, कैलिफ़ोर्निया में बंदरगाह क्षति हुई सोपरे वाले इंफ्रास्ट्रक्चर में 1 मिलियन डॉलर का नुकसान भी हुआ , जहाँ कभी में 2011 में $50 मिलियन का नुकसान हुआ था ।
 कोई भी बड़ा हादसा नहीं हुआ क्योंकि चेतावनी प्रणाली समय रहते सक्रिय हुआ और लोगों को सुरक्षित निकाला गया।
लेकिन 1952 के भूकंप में 9.0 मैग्नीट्यूड था , जिसने 18 मीटर ऊँची लहरें उत्पन्न की थीं और 2,300 लोग मरे थे ।

सोमवार, मार्च 24, 2025

जीवन की हकीकत (कविता)


जीवन की हकीकत (कविता)

मुसीबते तो यूँ आती रहती है, जीता वही जो डट के खड़ा है। आँधियों से पाला पड़ा कई बार, वो हर बार ये जंग लड़ा है।।

सच कहने वाले तो बहुत है मगर, हर एक सच कठघरे में खड़ा है।
साबित करने के लिए चाहिए दलीले बहुत, यहाँ झूठ सीना तान के खड़ा है।।

सफेदपोश समाजसेवी बन बैठे, जिनके दहलीज मे कालाधन गड़ा है।
बाते तो भलाई की करते है अक्सर, मगर जहन मे कूड़ा भरा पड़ा है।।

गरज पर मिश्री जैसे मीठे लोग, पीठ पीछे राई का पहाड़ खड़ा है।
कड़वा सच कहते है मुँह पर, हकीकत मे वो दिल का बड़ा है।।

अपने मुँह मिंया मिठु बनने से क्या, वो दामन जो लगे हीरों से जड़ा है।
 असलियत को छुपा लो कितना भी, मुखौटा हकीकत लिए पड़ा है।।

दिखावे की दुनिया में मची है होड़, नकली शान मे कौन किससे बड़ा है।
आधुनिकता की आड़ मे रिश्ते तार तार, पूरी तरह से भर गया पाप का घड़ा है।।

मत कर घमण्ड इतना ए हरीश, ये शरीर तो माटी का टुकडा है। एक दिन मिल जाना है इसी मे, तो फिर क्यो तेरी मेरी पे अड़ा है।।
Hameer shing prajapat 


_ हमीर सिंह प्रजापत 

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शुक्रवार, मार्च 14, 2025

वेद व्यास जी के माता पिता कौन थे।


वेद व्यास जी के जन्म की कथा आपने शायद ही सुनी होगी, आज हम आपको बता रहे हैं कि महर्षि वेद व्यास जी के माता पिता कौन थे और उनके जन्म के साथ क्या घटित हुआ था।
उनकी माता का नाम सत्यवती था,
 सत्यवती एक मछुआरे की पुत्री थीं इसलिए सत्यवती को "मत्स्यगंधा" के नाम से भी जानते हैं क्योंकि उनके शरीर से मछली की गंध जैसी महक आती थी। एक समय की बात है एक बार हस्तिनापुर के राजा शांतनु गंगा किनारे शिकार करने गए थे, जहाँ पर उन्होंने सत्यवती को देखा और उनसे विवाह करने की अपनी इच्छा जताई।
सत्यवती ने अपने पिताजी से मिलवा कर राजा का परिचय कराया,
सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से एक शर्त रखी कि सत्यवती की संतान ही हस्तिनापुर के राजा बनेगी। इस शर्त के कारण शांतनु बहुत दुखी हुए। 
राजा शांतनु वापस लौट आए लेकिन, जब गंगा पुत्र भीष्म को यह बात पता चली, तो उन्होंने अपनी राजगद्दी छोड़ने और आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने की प्रतिज्ञा ली। 
गंगा पुत्र भीष्म के पिता राजा शांतनु ही थे।
भीष्म के इस महान बलिदान से सत्यवती के पिता सहमत हो गए और सत्यवती का विवाह हस्तिनापुर राजा शांतनु से हो गया।
अब सत्यवती और राजा शांतनु खुशी से हस्तिनापुर में रहने लगे।
कुछ साल बाद सत्यवती से राजा शांतनु के दो पुत्र हुए—चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद युद्ध में मारा गया और विचित्रवीर्य संतानहीन रह गया।
 बाद में, सत्यवती ने महर्षि वेद व्यास जी के माध्यम से नियोग प्रथा द्वारा धृतराष्ट्र और पांडु को जन्म दिलवाया, जिससे आगे चलकर महाभारत का युद्ध हुआ।

तो इस प्रकार, सत्यवती महाभारत की एक महत्वपूर्ण पात्र बनी , अब बात करते हैं महर्षि वेद व्यास जी के जन्म गाथा को।

महर्षि वेदव्यास का जन्म महाभारत के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में से एक है। 
महर्षि वेद व्यास जी भी सत्यवती के पुत्र थे।
और पिता महर्षि पराशर के पुत्र थे। वेद व्यास जी का जन्म एक द्वीप पर हुआ था, इसलिए उन्हें "द्वैपायन" भी कहा जाता है।
वेदव्यास का जन्म कथा इस प्रकार है, 

सत्यवती एक मछुआरे की पुत्री थीं इसलिए युवावस्था में नाव चलाने का कार्य करती थीं। 
एक दिन, जब सत्यवती नाव चला रही थीं, तभी महर्षि पराशर वहाँ आए। 
वे सत्यवती के दिव्य रूप से प्रभावित हुए और सत्यवती से एक पुत्र की इच्छा व्यक्त की। सत्यवती ने कहा कि यदि ऐसा होता है, तो उनकी पवित्रता और समाज में उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँच जाएगी।

तब महर्षि पराशर ने सत्यवती को आशीर्वाद दिया कि इस घटना के बाद भी वे कुँवारी बनी रहेंगी और उनके शरीर से मछली की गंध दूर होकर एक दिव्य सुगंध आने लगेगी। इसके बाद सत्यवती ने हामी भरी तो, समागम हुआ और सत्यवती ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो जन्म के तुरंत बाद ही बड़ा हो गया और तपस्या करने चला गया।
 यही बालक आगे चलकर वेदव्यास कहलाया था।
महर्षि वेदव्यास भारतीय संस्कृति और धर्म में एक महान ऋषि माने जाते हैं, जिनका योगदान वेदों, पुराणों और महाभारत के रूप में अविस्मरणीय है।

गुरुवार, मार्च 13, 2025

महर्षि वेद व्यास जी और गणेश जी


महर्षि वेद व्यास जी को सनातन के गुरु और धर्मशास्त्रों के जनक माने जाते हैं। वो ही महाभारत के रचयिता और महाभारत के पहले पात्र रहे हैं। वेद व्यास जी कई महत्वपूर्ण पुराणों के संकलनकर्ता थे।

आज आपको वेद व्यास जी का परिचय करवा रहे हैं।

वेद व्यास जी का असली नाम कृष्ण द्वैपायन था, 
वे महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनकी जन्म गाथा भी अनोखी है जो आपको हमारे अगले लेख में बताई जाएगी, 

व्यास जी ने संस्कृत भाषा में महाभारत की रचना की, जो विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है।

वेद व्यास जी ने वेदों को चार भागों में विभाजित किया—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद— इसीलिए उन्हें 'वेद व्यास' कहा जाता है।

वेद व्यास जी के मुख्य ग्रंथ 
महाभारत की रचना, जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता भी सम्मिलित है।
पुराणों का संकलन—अठारह प्रमुख पुराणों में से कई की रचना उन्होंने की थी, जैसे कि भागवत पुराण।
ब्रह्मसूत्रों की रचना भी व्यास जी ने की, जो वेदांत दर्शन का मुख्य आधार बना है।
वेद व्यास जी ने कई हिंदू धर्मशास्त्रों को संरचित और सुव्यवस्थित किया हैं।
महाभारत के माध्यम से वेद व्यास जी ने धर्म, नीति, कर्तव्य और मानव स्वभाव का गहन ज्ञान प्रदान किया।
व्यास जी के द्वारा किया गया, वेदों का विभाजन , इसी कारण ही वेदों का अध्ययन आसान हुआ।
आपको बता दूं कि महाभारत को वेद व्यासजी ने श्री गणेश जी भगवान द्वारा सामने बैठ कर लिखवा था, इसलिए महाभारत को पवित्र ग्रंथ भी माना गया हैं क्योंकि खुद गणेश जी भगवान ने लिखा था।


महर्षि वेद व्यास जी को सनातन धर्म में अत्यंत पूजनीय और प्रात स्मरणीय माना जाता है, और 'गुरु पूर्णिमा' भी उनके सम्मान में मनाई जाती है।

महर्षि वेद व्यासजी का पांडवों का गहरा संबंध था वो भी हम आपको बता रहे हैं।
वे न केवल महाभारत के रचयिता थे, बल्कि पांडवों के कुलगुरु और उनके पूर्वज भी थे।

वेद व्यास जी से ही पांडवों और कौरवों का जन्म हुआ था।

महर्षि व्यास जी की माता सत्यवती थीं, सत्यवती ने राजा शांतनु से विवाह किया था। उनके दो पुत्र विचित्रवीर्य और चित्रागंदा थे, लेकिन उनकी निसंतान ही अकाल मृत्यु हो गई ।
 तब सत्यवती ने वेद व्यास जी को बुलाया और उनसे नियोग परंपरा के तहत विचित्रवीर्य की रानियों अंबिका और अंबालिका से संतान उत्पन्न करने का अनुरोध किया।

तब अंबिका से धृतराष्ट्र का जन्म हुआ ,जो जन्म से अंधे थे।

अंबालिका से पांडु का जन्म हुआ ,जो एक दुर्बल शरीर वाले थे।

एक दासी से विदुर का जन्म हुआ , जो बहुत ज्ञानी और न्यायप्रिय थे। 

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इस प्रकार पांडवों और कौरवों के कुल की उत्पति हुई।
महाभारत की अन्य जानकारी के लिए हमारी अगली पोस्ट और अन्य लेख भी देखें।
एक से एक अच्छे लेख आपको मिलते रहेंगे।
धन्यवाद 

विशिष्ट पोस्ट

संत रामानंद जी महाराज के शिष्य

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