शुक्रवार, अप्रैल 30, 2021

कोरोना राजस्थान में (कविता)


घर बैठजा , गली बाजार में मत घूम, 
मुख देखणो वे थारे संसार रो तो सुन,
तो मुख माथै पाटो क्यूं नी डालै हैं ।
मारवाड़ में मौत रो सीजन हालै हैं।

दवायां की कमी आई, दवाखाना पड़ा भरिया,
थोडो डर भी राख ,बारे 'मरी' पड़े हैं, घणा मरिया,
कोरोना कठै हैं युं कहतो क्युं चालै हैं।
मारवाड़ में मौत रो सीजन हालै हैं।

अशोक अर काकी दोनों ने होगयो, गहलो भाई,
जीवता रेया तो मौका ब्याह, नितर राम रघुराई,
शादी फंक्शन कर कर, क्यूं इणने घर में घालै हैं।
मारवाड़ में मौत रो सीजन हालै हैं।

पोलिस आळा चालान काटे, ओर मारे लठ,
टाबर ने समझावै ज्युं केवै, पर थे पकड़ी है हठ,
अजु तक होयो कोनी, तो थारे राम रुखाळै हैं।
मारवाड़ में मौत रो सीजन हालै हैं।

थारे मौत सुं सरकार रे तो , खाली आंकड़े बढसी,
पण थारै टाबरां और परिवार री उम्र दोरी कटसी,
केवै सुथार देवलो, तुं झूठौ वहम पालै हैं।
मारवाड़ में मौत रो सीजन हालै हैं।
तो मुख माथै मास्क क्यूं नी डालै हैं।
मारवाड़ में मौत रो सीजन हालै हैं।।

प्रस्तुति :- देवा सुथार बाण्ड

रविवार, नवंबर 01, 2020

कल का मुन्ना, आज का लेखक

भोर होते ही जाग कर घर का काम किया, भेड़ बकरियों और गाय को खिलाया पिलाया, दुध निकाल के गर्म किया, दही मथकर मख्खन और छाछ अलग की और घर के काम तो कभी पूरे नहीं होते।
रात का बचा हुआ खाना खा कर रवाना हो, तब तक तो दिनकर सर चढ गये, भरी दोपहरी हो गई जेष्ठ माह की। तपती धूप में, लूं के थपेड़े और बरसती आग में पति-पत्नी दोनों बढ़ रहे थे, अपने एक वर्ष के बच्चे को कभी मां गोद में उठा रही थी तो कभी, पिता कन्धे पर बिठा रहे थे, क्योंकि आठ कोस जाकर दिन ढलने से पहले वापस जो आना था।
नब्बे के दशक में मारवाड़ के गांवों में बसों की आवाजाही कम ही होती थी, अच्छी सड़कें भी अटल सरकार के बाद बनने लगी थी।
सुखे होंठों ने पानी की प्याली को आशावादी दृष्टि से देखा तो, एक घुंट पानी पेंदे में हिल रहा था।वो पानी कप में डालकर बच्चे को पिलाया और फिर से रफ्तार बढ़ाई शहर की ओर।
चलते चलते एक घर के पास पहुंचे और पानी मांगा, आंगन  में खड़ी घर की मालकिन ने अंदर छाया में आ जाने का निमंत्रण दिया।
पानी पिलाया और बकरी का दूध निकाल कर लाई, चाय की भगोली चुल्हे पर रखीं ,अब पूछने लगी- कौन गांव से आ रहे हैं, आगे कहां तक जा रहें हैं?
मारवाड़ का तो रीति रिवाज है पहले चाय पानी, फिर खैर ख़बर।
तब मां अपने बच्चे के सिर पर हाथ घुमाते हुए कहने लगी- मुन्ने का तबीयत काफी दिनों से खराब चल रहा हैं।
हमने सोचा ठीक हो जाएगा लेकिन नहीं हुआ, किसी ने बताया शहर में दिखा लाओ तो, आज सुबह निकलने वालें थे,पर निकलते निकलते देर हो गई।
घर भी पहुंचना है शाम होने तक, घर पर कोई नहीं है।
तब वो औरत बीच में ही बोल उठी- तो और बच्चे कहां हैं?
उन्हें तो घर पर छोड़ कर आये होंगे?
मां कहने लगी- नहीं बहन !
मुन्ने का एक तीन साल का बड़ा भाई था, भगवान ने उसे वापस बुला लिया।
पांच साल बाद यह हुआ हैं अब यह भी ठीक नहीं रहता हैं।
इसलिए दर दर भटक रहे हैं।
अब तक चाय तैयार हो गई थी, चाय पीकर पानी की प्याली भरी और चलने लगें।
घर की मालकिन बाहर तक छोड़ने आई और विदा करते हुए बोली- आते समय भी चाय पीकर जाना, रात हो जाये तो यहां आकर रुकना।
छंद मिनटों के आराम और चाय ने मानों, तन मन में जोश भर दिया हो, उस औरत की प्रसंशा करते हुए , कब शहर में प्रवेश कर गये पता ही नहीं चला।
पुछताछ करते हुए डॉक्टर से जा मिले, सुई लगाई, कुछ दवाइयां दी और पांच दिन बाद वापस आने को कहा।
दवाखाने से निकले तब तक सुर्य भगवान ढल चुके थे।
दौड़ते भागते उसी घर के बाहर पहुंचें, जहां दिन में पानी पिया था।
रात वहीं रुक गये, घर पर जेठानी ने मवेशियों की सार संभाल की होगी, दिन को बोल कर तों आये थे।
सुबह जल्दी उठकर चलें तब जाकर सवा पहर दिन चढ़ने तक घर पहुंचे।
यही हाल ठीक उसके पांच दिन बाद भी हुआ होगा क्योंकि, डॉक्टर ने वापस जो आने के लिए कहा था।
एक वर्ष तक यही क्रम चल रहा था, झाड़ फूंक, देवी देवताओं को भी मनाया, व्रत उपवास और परिक्रमा भी की, पर मुन्ना ठीक नहीं हो रहा था।
एक बार अपने पहले पुत्र को खोने के बाद मुन्ने की मां अपने मायके गई हुई थी और वहां पड़ोस में ही एक प्रतिष्ठित संत आये हुए थे, जो वचन सिद्ध महात्मा थे।
उन्होंने आशीर्वाद दिया था कि हे पुत्री!
आना जाना संसार की रीति हैं, जाने वालों के पीछे शोक व्यक्त करने का भी एक समय होता है, रोने का वक्त गया, अब खुशियां मनाओं, भगवान की कृपा से तेरे नसीब में पांच पुत्रों सुख लिखा है।
उन्ही संत के दर्शन का सोभाग्य फिर से मिला था आज, तो संत जी ने कहा- पुत्री अपने मुन्ने का नाम मेरे नाम से मत पुकारों, कोई और देव के नाम पर रख दो, आपका बच्चा ठीक हो जाएगा।
संत जी का वचन सत्य साबित होने लगा कुछ समय बाद, अब मुन्ने को दैयो कहने लगे थे, दैयो तीन साल का हो गया था।
एक दिन दैयो की नानी आई , दैयो को अपने साथ ननिहाल ले गयी क्योंकि, दैयो का छोटा भाई भी संसार में आ गया था।
दोनों पुत्रों का ख्याल रखना मुश्किल था, घर का काम भी करना और बच्चों को भी संभालना, इसलिए नानी ने दैयो को अपने पास रख लिया।
दैयो पांच साल का हुआ तो, नानी ने स्कुल में दाखिला दिला दिया, दैयो पढ़ने में होशियार था, पांच साल में पांचवीं कक्षा पास करली।
अब दस साल का हो गया था दैयो, छठी कक्षा में प्रवेश दिलाने के लिए नानी ने वापस बेटी के पास भेज दिया, ननिहाल में स्कुल पांचवीं तक ही थी।
छठी कक्षा में दैयो, नयी स्कुल ,नये मित्र और नये अध्यापकों से मिल रहा था, उमंग और दिल में भय भी अनुभव हो रहा था।
धीरे धीरे आदत और मित्रता बढ़ी, दैयो आठवीं तक पहुंच गया।
अब तो तीसरी स्कुल ढुढनी थी, जो आठवीं से आगे की पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए काम आये।
घर से ढाई कोस दूर एक संस्कृत विद्यालय था दुसरे गांव में, आना जाना भी पैदल ही करना होगा।
साइकिल भी नहीं थी, पिता जी गुजरात में मजदूरी करने जाते थे, घर खर्च आसानी से चल रहा था, पांच पुत्रों के पिता कमाते वो भी कम पड़ने लगा, दैयो भी दूर की स्कुल जाकर , पढ़ना कम और परेशान ज्यादा हो रहा था।
जैसे तैसे नवीं कक्षा पास कर, अपने पिता के साथ काम पर जाने की जरूरत समझी।
पढ़ाई तो छोटे भाई चारों भी कर रहे थे, काम पिता अकेले ही कर रहे थे।
पिता जब घर लौट कर आए तो, साथ चलने वाली बात रखी, पिता जी ने हामी भर दी।
बचपन का मुन्ना,आज का दैयो, पन्द्रहवे वर्ष में अपने जीवन की नयी शुरुआत करने पिता जी के साथ गुजरात की तरफ रवाना हो चुका था।
फिर तो कमाने के चक्कर में न जाने, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र, कर्नाटक तेलंगाना अनेकों जगहों पर जाने लगा।
शादी भी हो चुकी थी, दो बच्चे भी हो गये, दैयो तीस साल का आदमी हो गया।
अब तक परिवार के सारे सदस्यों ने अपना अपना काम पकड़ लिया, दैयो के माता पिता भी आराम से भगवान की भक्ति कर रहे हैं, सब भाई अपने हिसाब से कमा और खा रहे हैं।
दैयो कभी कभी समय मिलता है तो, संत, समाज, संसार, और सत्य के लेख लिखने की कोशिश कर लेता है।
जाना माना लेखक तो नहीं बन पाया लेकिन, अपना और अपने मित्रों का मन हल्का कर देता है, अपने विचारों से।
अब दैयो को जानने पहचानने वाले लोग उसे, देवा जांगिड़ कह कर पुकारते हैं।
जय श्री राम
।।इति।।

शुक्रवार, अप्रैल 24, 2020

गलतफहमियां या षड़यंत्र

गलतफहमियां हैं या षड़यंत्र
हमारे देश में एक महामारी आती हैं जिसे कोरोना वायरस का नाम दिया गया है।
जिसका जन्म चीन में हुआ था, कहने को तो चमगादड़ के कारण फैली हुई है, लेकिन लगता नहीं कि यह प्राकृतिक बिमारी होगी, क्योंकि, प्राकृतिक बिमारी मौसमी होती हैं।
जबकि कोरोना वायरस कोई मौसम नहीं देखता, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को स्पर्श करने पर भी फैल रहा है।
कभी कभी ऐसा लगता है कि या तो जानबूझकर  ऐसा वायरस तैयार किया गया है जिससे, लोगों की जान जा सके, वैश्विक ताकत को कमजोर किया जा सके और विश्व की आर्थिक स्थिति खराब हो जाये।
फिर हम (जो वायरस के जनक हैं) ताकतवर बनकर हुकूमत कर सकते हैं।
 या किसी रिसर्च में लापरवाही बरतने से गलत इफैक्ट हो गया है, जो धीरे धीरे आगे से आगे फैल गया हो।
आज पूरी दुनिया इस वायरस की सपेट में आ रही है, जो लोग ठीक भी हो रहे हैं वो भी , दूसरी बार संक्रमित हो सकते हैं,।
प्राकृतिक बिमारियों में दुबारा संक्रमित होने की संभावना नहीं रहती हैं।
दूर रहें, सावधान रहें, भारत के लिए , घर में रहें।
- देवा जांगिड़
सामाजिक विचारक

रविवार, मार्च 29, 2020

एक लेखक की कल्पना

दिन ढल रहा था मैं रात होने की खुशी मना रहा था,
रातें कटती रहीं मेरी, कभी नींदों में तो कभी जाग रहा था,
सुबह भी बहुत आई थी मेरी जिंदगी में, 
रोज नयी सुबह का इंतजार किए जा रहा था,
अन्न और जल भी खूब खाया पिया जिंदगी में,
एक बचपन भी आया था तब, मैं खेल रहा था,
जवानी दे गया और मैं फिर बचपन चाह रहा था जिंदगी में,
सर के बालों और गालों ने बताया बूढ़ापा आ रहा था,
आखिरी वक्त भी आया था जिंदगी में,
कह गया देवा से, वो तेरा ही जीवन जा रहा था,
लिख लें मनचाहा, छोटी सी जिंदगी में,
लोग तो कहेंगे जाने के बाद, अच्छा ही लिख रहा था।

शुक्रवार, मार्च 27, 2020

कोरोना मारवाड़ी में

कोरोना 
कोरोना शब्द का यदि हमारी भाषा राजस्थानी (मारवाड़ी) में अनुवाद किया जाये तो, यह कोई बिमारी नहीं अपितु एक सलाह है।
जिसके ना मानने का दंड आज पूरी दुनिया भुगत रही हैं।
यह कोरोना वायरस ७५ नेनोमीटर से भी छोटा कण है जिसने सभी प्राणियों का जीवन संकट में डाल दिया है।
पिछले १०० सालों से विज्ञान और तकनीक की मदद से मनुष्य ने प्रकृति के साथ बहुत ख़िलाफत की है।
वायु को प्रदुषित करना, जंगलों को शहरी क्षेत्र बनाने, पशु पक्षियों को छति पहुंचाने और यहां तक कि, नभ में भी अपनी महानता का सबूत छोड़ने की कोशिश की है।
इन सब कारणों से पिछले कई सालों से प्रकृति को अपने कार्य में बदलाव लाने के लिए मजबूर कर दिया।
जिसका सबूत आज हम स्पष्ट देख पा रहे हैं, सर्दियों में गर्मी, गर्मियों में बरसात, वर्षा ऋतु में गर्मी आदि।
अब बात करें कोरोना के मारवाड़ी अर्थ के बारे में, "कोरोना" यानि मारवाड़ी में "को रोह ना" होता है।
को - क्या नहीं (मारवाड़ी में मना करने के लिए "को" शब्द का प्रयोग किया जाता है।)
रो- रोह ( रूकने के लिए मारवाड़ी में "रोह" शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है।)
ना- नहीं (नहीं को मारवाड़ी में छोटा करके "ना" शब्द बना दिया जाता है।)
सार सहित अर्थ यह है कि , 
क्या आप नहीं रूक सकते हैं, क्या आप रुकोगे ही नहीं,
क्या कुछ भी करने के बाद भी नहीं रुकोगे।
"थे को रोह ना, कांई करया भी।"
जो लाख कौशिश करने के बाद भी नहीं रुकते हैं या बुरे कर्म करते रहते हैं, प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते रहते हैं और अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति को गलत ठहराते हैं उनके लिए प्रयोग में लाया जाने वाला शब्द है "कोरोना" ।
जिसे विज्ञान की भाषा में वायरस कहा जाता है।
धन्यवाद
पोस्ट अच्छी लगे तो मेरे ब्लोग " सत मार्ग की ओर "  को शेयर करें।
देवा जांगिड़ बाण्ड 
सामाजिक विचारक

गुरुवार, सितंबर 26, 2019

गांव बाण्ड से आने वाली हैं बड़ी प्रेरणा दायक खबर

बाड़मेर जिले के गुड़ामालानी विधानसभा क्षेत्र में ग्राम पंचायत "बांड " से बड़ी खबर आ रही हैं।
ग्राम पंचायत बांड के मुख्य समूह "बाण्ड यूथ क्लब (रजि.)" के सदस्यों के द्वारा चर्चा की गई कि आज से ही ग्राम पंचायत बाण्ड को प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने की मुहिम शुरू की जायेगी जो आने वाली 150 वीं गांधी जयंती तक पूर्ण रूप से प्लास्टिक मुक्त गांव बन सकता हैं।
समूह के सभी सदस्य एकमत नजर आए, और यदि बाण्ड गांव ऐसा करने में सक्षम हो जायेगा तो, सभी गांवों के लिए प्रेरणा देने वाली ग्राम पंचायत बन जाएगी।
देश भी इसी तरह की समस्या से निजात पाने के लिए प्लास्टिक मुक्त होना चाहता है।
हम आशा करते हैं कि गांवों में परिवर्तन लाने से ही देश का नव निर्माण होगा,
मैं देवा जांगिड़ हमारे ब्लॉग
" सत मार्ग की ओर " की ओर से ग्राम पंचायत के समूह "बाण्ड यूथ क्लब " और  सभी ग्रामीणों को इस अभियान के सफलता की शुभकामनाएं देता हूं।


शुक्रवार, अप्रैल 12, 2019

हिन्दुओं को जानना जरूरी है, यह बातें

दोस्तों आज मैं आपको हिंदू धर्म के कुछ रहस्य की बातें बता रहा हूं, जो कम लोग ही जानते हैं, लेकिन यह रहस्य हम सब हिन्दुओं को जानना जरूरी है।

हम बाहरी लोगों के फेसन और दिखावे में आकर अपने धर्म को भूल जाते हैं, आज भारत के दक्षिण भाग में धर्मांतरण की गति बढ़ रही हैं, कोई ईसाई, तो कोई मुस्लिम बन रहे हैं।

हिंदू कम होते जा रहे हैं, यह यदि चलता रहा तो आने वाले समय में भारत हिंदू रहित देश बन जायेगा ।

हमे अपने भाइयों को धर्म बदलने से रोकना होगा।

हमारी बहन बेटियां मुस्लिमों के लव जिहाद का शिकार हो रही हैं।

हम तो संतान उत्पति को कम कर रहे हैं और ‘हम दो हमारे दो’ , की बात कर रहे हैं।

मुस्लिम अनेक शादियां करके अनेक बच्चे पैदा कर रहे हैं।

ईसाई भी टोने टोटके करके हमें अपने धर्म में जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

हम हमारे प्राचीन समय के दिन, दिवस, पर्व और रीति रिवाज से वांशित करके अपने बच्चों को नए नए त्यौहार मानने को राजी कर रहे हैं जो गलत है।

बर्थ डे, वेलेंटाइन डे, किसमिस डे, थर्टी फर्स्ट, अप्रैल फूल आदि आदि।

हम खुद होली का रंग खेलने को मना कर रहे हैं, दीवाली के पटाखे जलाने का मना कर रहे हैं, शिवलिंग पर दूध चढ़ाने वाले को मना कर रहे हैं।

याद करो जब हिंदू धर्म में कोई डॉक्टर नहीं हुआ करता था, तब भी यह अभी वाली बीमारियां नहीं होती थी, जड़ी बूटियों घिसने वाले वैद्य और चमत्कारी साधू संत ही हमारे डॉक्टर थे।

इस समय के बाबा भी हमें अपने धर्म से भटका रहे हैं।

हमारे चारों ओर षडयंत्र रचा जा रहा हैं, अन्य धर्मों के द्वारा , जो हम देख नहीं पा रहे हैं, हमारा धर्म हमसे जबरन छुड़वाया जा रहा हैं परन्तु, हम महशुश भी नहीं कर पा रहे हैं।

हमें हमारे धर्म में खामियां गिनाई जा रही हैं, खाने की वस्तुओं में मांस मिलाकर खिला रहे हैं।

जातियों का बंटवारा हो रहा हैं, बच्चों को स्कूलों में धर्म से अलग पाठ पढ़ाए जाते हैं, धार्मिक लोगो को अंधविश्वासी बताया जा रहा हैं।

विज्ञान की आड़ में धर्म से अलग किया जा रहा हैं।

मेरी बातों को नजरंदाज मत करना,

हिंदू धर्म की प्राचीन रहन सहन, खान पान, और रीति रिवाज को फिर से आजमाना होगा,

आजकल हमारे कई हिंदू भाई बहन हमारी संस्कृति को लेकर शर्म महसुश करते हैं और आसूरि मानसिकता पर गर्व करते हैं।

लेकिन हमें हमारे धर्म और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए।

कहो “ मुझे गर्व हैं कि मैं हिंदू भी हूं”

मेरा धर्म ही मेरा देश, कर्तव्य, परिवार और जीवन है।

बाकि तो गुलामी हैं ।

जय हिन्द,

।।जय श्री राम।।
देवा जांगिड़
सामाजिक विचारक

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संत रामानंद जी महाराज के शिष्य

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