गुरुवार, सितंबर 06, 2018

आंदोलन नहीं करना हैं।

आज देश के नाम लेख लिखने का प्रयास किया है मेने।

आप विश्वास कर सकते हैं मुझ पर कि, यह लेख केवल मेरी एक व्यक्तिगत चाहत है या यूं कहें तो, मैं भारत को इस रुप में देखना चाहता हूं।

न मेरी कोई राजनीति पार्टी से संधि हुई हैं, न किसी राजनेता से और न ही कोई ताकतवर शख्सियत का दबाव है।

होशो-हवास और स्वतंत्र दिल से लिख रहा हूं।

देश में लूट मची हुई है चारों ओर, कोई राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगा है, कोई धर्म और आध्यात्म के नाम से माल निगल रहा है, कोई कामवासना ग्रसित राक्षस बन घूम रहा हैं, कोई जात-पात के सहारे जहर घोल रहा है तो कोई पीठ पीछे घात लगाए बैठे हैं।

सीधे शब्दों में कहूं तो, हमारे देश लालची नेता, निर्लज्ज और अधर्मी प्रेरक (बाबा, मौलाना, धर्मगुरु, फ़कीर आदि ठेकेदार) जातिवादी लीडर, धोखेबाज और बलात्कारी लोगों का पनाहगाह बन रहा है।

आज की स्थिति फिर भी ठीक है लेकिन जो हालात बन रहे हैं उससे अदांजा लगाया जाये तो, आने वाले ३० साल में बहुत दयनीय स्थिति हो सकती हैं।

आप कल्पना कर सकते हैं,

हर क्षेत्र (जैसे जिला, तहसील और यहां तक कि गांव भी) अपना एक अलग देश बन जाएगा,

हर जाति का अलग अलग धर्म होगा,हर परिवार में चुनाव होने लगेगा और कानून इतिहास बन जायेगा, सेना और पुलिस अपनी जाति के साथ होकर, एक दूसरे के खिलाफ हो जायेंगे।

कामुक लोग कुत्तों की तरह झुंड बनाकर गलियों में शिकार ढूंढने निकलेंगे, लड़कियों की कमी हो

जायेंगी और यदि होगी तो भी भूमिगत होकर रहने को मजबूर हो जायेगी।

धार्मिक स्थल शापिंग मॉल बन जायेंगे।

सब खुद को ताकतवर बनाने की कोशिश में कमजोर को दबाने में कामयाब हो जायेंगे।

कानों में केवल हाहाकार और मारो मारो की आवाज सुनाई देगी।

अब आप वर्तमान में आकर सोचें कि हम उस भयंकर विनाश से बचने के लिए इस समय क्या कर सकते हैं।

“आरक्षण”

आज कोई आरक्षण के खिलाफ है तो कोई आरक्षण की मांग कर रहा है, इसका कारण यह है कि हमारे देश में भेदभाव हैं।

देश दावा करता है कि यहां कानून सबके लिए समान है, तो कानून पर अंगुली क्यूं उठती हैं?

मेरा मानना हैं कि गड़बड़ तो हैं।

मैं देश का नागरिक हूं मेरा अधिकार है कि, देश की हर गतिविधि पर नजर रखने की कोशिश करुं।

देश के नागरिकों के लिए मेरी सलाह देना भी जरूरी हैं, मानना या न मानना, भाई-बहनों के उपर निर्भर करता हैं।

आरक्षण देश के कमजोर लोगों के लिए जरूरी है और मैं आरक्षण समर्थन करता हूं।

मुझे आरक्षण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि, मैं कमजोर या गरीब नहीं हूं और मैं किसी गरीब का हक छीनना नहीं चाहता हूं।

मेरी जाति या धर्म दलितों में नहीं आता है, हां मेरी जाति या धर्म में कोई गरीब जरूरतमंद हो सकता हैं।

और उसे आरक्षण की जरूरत हो सकती है।

मेरी नज़र से दलित कोई जाति या धर्म नहीं है, सबके पास काम और धन भी है।

मैं गरीब, दरिद्र, दलित, और असहाय उन लोगों को मानता हूं जो अपने जीवन में आवश्यक सामग्री नहीं खरीद सकते हैं।

एक तरफ तो हमें कहा जाता हैं कि किसी जाति को दलित कहकर अपमानित मत करो और दुसरी तरफ से खुद कहते हैं कि हम दलितों के साथ हैं ( विशेष जाति और धर्म के नाम लेकर)

जब देश की जनसंख्या गणना होती हैं तो पूछा जाता है कि आपकी जाति क्या हैं?

हमें अलग अलग भागों में बांटकर बताया जाता हैं कि आप वो हैं और वो ,वो हैं ‌, आप इतने हैं और वो इतने हैं।

जबकि यह पुछा जाना चाहिए कि आपकी आमदनी कितनी हैं, और आपको आवश्यकता कितनी हैं।

लोगों में धर्म के प्रति जागरूक रहने की जरूरत है क्योंकि, कई लोग खुद को धर्म का ठेकेदार बता कर, डराते हैं या मनोकामना पूर्ण करने का दावा करके अपने पक्ष में कर रहे हैं।

कोई मिलने की फीस ले रहे हैं तो कोई अपना बनाया सामान बेच रहे हैं।

धर्म पुण्य करने की चाहत रखने वालों को किसी असहाय और भुखे, आदमी और पशु पक्षियों की सहायता करने के लिए दान करना चाहिए।

वह चाहे आपकी नजर में गाय हो या गरीब हो या मोर हों।

टीवी, फिल्म और बाजार में चल रहे नग्न तस्वीरें, विडियो, हरकतों और अश्लीलता को रोककर ही बलात्कारियों को कम किया जा सकता हैं।

टीवी चैनलों, फिल्म डायरेक्टरों और विज्ञापनों में कामुकता बढ़ाने वाले किसी भी दृश्य को वर्जित कर दिया जाए, छोटे-छोटे कपड़ों में घूमने वाले लोगों पर जुर्माना लगाया जाये।

अशुद्ध भाषा का प्रयोग करने वाले गाने, भाषणों और काव्यों पर जुर्माना लगाया जाये।

अश्लीलता शेयर करना जुर्म होना चाहिए।

और भी बहुत सुधार लाने की आवश्यकता है देश में, आप भी जानते हैं लेकिन, मेरी समझ में जितना आता है उसे आप तक पहुंचा दिया।

समय के अभाव में मेरा लेख संपूर्ण करने का समय आ गया है।

आपकों मेरे विचार अच्छे लगे तो, अपने मित्रों को भी बताएं,

जल्द ही एक और लेख के साथ अगली बार आपसे हमारी मुलाकात होगी।

जय भारत

सामाजिक विचारक - देवा जांगिड़ गुड़ामालानी

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