शनिवार, नवंबर 02, 2024

संत सूरदास जी महाराज



 संत सूरदास जी महाराज दोस्तों आज हम एक ऐसे संत की बातें जानेंगे जो कि अपनी आंखों से देख भी नहीं सकते थे लेकिन, भगवान की हर एक लीला वर्णन करते हैं जो कि दिव्य दृष्टि होने का प्रमाण देती हैं।

संत सूरदास जी एक प्रसिद्ध भक्ति कवि और संत थे, जो विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहे। उनका जीवन और रचनाएँ भक्ति साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

 यहाँ संत सूरदास जी के बारे में विस्तार से जानकारी प्रस्तुत है:


जीवन:


जन्म: संत सूरदास जी का जन्म 15वीं सदी में माना जाता है, हालांकि उनके जन्म की सही तिथि और स्थान के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है। उन्हें अधिकतर उत्तर प्रदेश के मथुरा या आगरा क्षेत्र में जन्मा माना जाता है।


पृष्ठभूमि: सूरदास जी एक मंझले स्तर के परिवार से थे और माना जाता है कि वे जन्मांध थे। लेकिन उनकी दृष्टिहीनता ने उनकी भक्ति और रचनात्मकता को प्रभावित नहीं किया।



भक्ति का मार्ग:


कृष्ण भक्ति: सूरदास जी ने अपने जीवन का अधिकांश समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में बिताया। उन्होंने कृष्ण लीला और उनकी बाल लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया।


काव्य रचनाएँ: उनके पद और कविताएँ सरल भाषा में हैं, जो आम जनता को समझ में आने वाली हैं। उनके काव्य में भक्ति, प्रेम, और राधा-कृष्ण के बीच के दिव्य संबंध को बहुत सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है।

संत सूरदास जी की रचनाएँ भारतीय भक्ति साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी रचनाएँ मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रेम और उनकी लीलाओं पर आधारित हैं। यहाँ संत सूरदास जी की कुछ प्रमुख रचनाओं का विवरण प्रस्तुत है:


1. सूरसागर:


विवरण: "सूरसागर" संत सूरदास जी की सबसे प्रसिद्ध रचना है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, उनकी शरारतों, और राधा के प्रति उनके प्रेम का सुंदर चित्रण किया गया है। यह रचना विभिन्न पदों और छंदों में विभाजित है, जो कृष्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।


विशेषताएँ: सूरसागर में इनकी रचनाएँ गहरी भावनाओं और दृश्यात्मकता से भरी हुई हैं, जो पाठकों और श्रोताओं को कृष्ण की दिव्यता और उनके प्रेम के अनुभव में डुबो देती हैं।



2. सूरदास की कविताएँ और पद:


विवरण: संत सूरदास जी के कई पद हैं जो उनकी भावनाओं, विचारों और कृष्ण के प्रति भक्ति को व्यक्त करते हैं। ये पद साधारण भाषा में लिखे गए हैं, जो आम जनता के लिए समझने में सरल हैं।


विशेषताएँ: इन पदों में प्रेम, भक्ति, और समर्पण का गहरा अनुभव होता है, जो पाठकों के हृदय में गूंजता है।



3. कृष्ण लीला:


विवरण: सूरदास जी ने कृष्ण की लीलाओं को अपनी रचनाओं में बड़े ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। इनमें राधा और कृष्ण के प्रेम के विभिन्न प्रसंग, माखन चोरी की लीलाएँ, और गोपियों के साथ उनके खेल शामिल हैं।


विशेषताएँ: उनकी रचनाएँ न केवल भक्ति को व्यक्त करती हैं, बल्कि उन्हें एक काव्यात्मक और रंगीन रूप में प्रस्तुत करती हैं।


4. राधा और कृष्ण का प्रेम:


सूरदास जी ने राधा और कृष्ण के प्रेम को बहुत गहराई से व्यक्त किया। उन्होंने राधा की भावनाओं, उसके प्रेम और उसके दर्द को अत्यंत संवेदनशीलता से चित्रित किया। उनके काव्य में राधा का कृष्ण के प्रति भक्ति और समर्पण का भाव हमेशा विद्यमान रहता है।


5. प्रेम की सर्वोच्चता:


सूरदास जी का मानना था कि प्रेम ही सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने पदों में दिखाया है कि सच्चा प्रेम आत्मा और ईश्वर के बीच का एक गहरा संबंध है। उनका प्रेम निस्वार्थ, समर्पित, और पूर्ण था, जिसमें भक्त की आत्मा को अपने प्रभु में समर्पित कर दिया जाता है।


6. सामाजिक भक्ति:


संत सूरदास जी का कृष्ण प्रेम केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं था, बल्कि उन्होंने इसे समाज के लिए भी एक प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने जाति और वर्ग के भेद को नकारते हुए सभी को प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।


7. कविता और पद:


सूरदास जी की रचनाएँ, जैसे कि "सूरसागर", में कृष्ण प्रेम की गहराई को दर्शाया गया है। उनके पद सरल, लेकिन गहरे अर्थ वाले होते हैं, जो सीधे हृदय में उतरते हैं। उनकी कविताएँ आज भी भक्तों के लिए एक स्रोत के रूप में कार्य करती हैं।


निष्कर्ष:


संत सूरदास जी का कृष्ण प्रेम एक अद्भुत भावना है, जो न केवल भक्ति के माध्यम से व्यक्त होती है, बल्कि यह मानवता के प्रति एक गहरा संदेश भी देती है। उनका जीवन और रचनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि सच्चा प्रेम, समर्पण, और भक्ति में ही सच्चा आनंद और मोक्ष निहित है। संत सूरदास जी का कृष्ण प्रेम आज भी भक्तों को प्रेरित करता है और भक्ति साहित्य का एक अमूल्य हिस्सा है।




शिक्षाएँ:


प्रेम और भक्ति: सूरदास जी ने प्रेम और भक्ति को सबसे महत्वपूर्ण माना। उन्होंने सिखाया कि सच्ची भक्ति में

श्री सूरदास जी महाराज

आत्मसमर्पण और प्रेम का होना आवश्यक है।


सामाजिक समानता: उन्होंने जाति-पात के भेदभाव का विरोध किया और अपने पदों के माध्यम से सभी को एक समान समझा।



निधन:


संत सूरदास जी का निधन 16वीं सदी में हुआ, और वे अपनी भक्ति रचनाओं के लिए हमेशा याद किए जाते हैं। उनके विचार और काव्य भारतीय भक्ति आंदोलन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, और उनकी रचनाएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।


संत सूरदास जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ हमें यह सिखाती हैं कि भक्ति, प्रेम, और मानवता का मार्ग सबसे महत्वपूर्ण है।


क्या आपको सूरदास जी के जीवन की कोई और बात है जो आप जानते हैं, तो हमे कमेंट बॉक्स मे बता सकते हैं।

संत कबीरदास जी

दोस्तों आज हम बात करेंगे कि संत कबीर दास जी कौन थे, 
उनके गुरू जी, गुरू भाई कौन थे, 
शिष्य कौन थे, उनके भगवान कौन थे , 
उनके जन्म और मृत्यु के कारण क्या थे
उनका हिंदी धर्म में कितना योगदान है और उनके कितने पंथ चल रहे हैं?
पूरी जानकारी देने की कोशिश करेंगे, चलो शुरू करते है 
कबीरदास (कबीर) 15वीं शताब्दी के एक महान भारतीय संत, कवि और समाज सुधारक थे। वे न केवल एक संत थे, बल्कि एक समाज सुधारक के रूप में भी उन्होंने हिंदू और मुस्लिम समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, कर्मकांडों, और सांप्रदायिकता के खिलाफ आवाज उठाई। उनका जीवन और उनकी कविताएँ लोगों को ईश्वर की भक्ति, मानवता, और प्रेम का संदेश देती हैं।

कबीर जी का जन्म और मृत्यु के बारे में बहुत सारी किंवदंतियाँ हैं। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म एक मुस्लिम बुनकर परिवार में हुआ था, लेकिन कुछ अन्य किंवदंतियों के अनुसार, उन्हें एक हिंदू माता-पिता ने त्याग दिया था और बाद में नीरू और नीमा नाम के मुस्लिम दंपत्ति ने उनका पालन-पोषण किया।

उनकी प्रमुख रचनाओं में बीजक, साखी, शब्द और रमैनी शामिल हैं। उनके काव्य की भाषा सधुक्कड़ी कही जाती है, जिसमें हिंदी, अवधी, ब्रज, और भोजपुरी का मिश्रण है। कबीर की काव्य रचनाएँ सरल, सारगर्भित और गहरे आध्यात्मिक अर्थ लिए होती हैं। उनके दोहे और पद आज भी समाज को सत्य, प्रेम, और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाते हैं।

कबीरदास के अनुसार, सच्चा ईश्वर केवल आस्था और सच्चे प्रेम से प्राप्त किया जा सकता है, न कि किसी कर्मकांड या बाहरी आडंबर से। उनके दोहे हर इंसान को स्वयं के अंदर झांकने और जीवन के सच्चे अर्थ को समझने का संदेश देते हैं।

आइए जानते है कबीर जी के राम कौन थे।

कबीर जी के राम परमात्मा, निराकार, निर्गुण और सर्वव्यापी ईश्वर का प्रतीक हैं। उनके "राम" किसी विशेष रूप, मूर्ति या अवतार से बंधे हुए नहीं थे। कबीर जी ने अपने समय में प्रचलित धार्मिक परंपराओं और मूर्ति पूजा के विरुद्ध स्वर उठाते हुए यह स्पष्ट किया कि उनका राम एक निराकार, सर्वशक्तिमान और असीम शक्ति है जो हर कण में व्याप्त है।

कबीर जी के अनुसार, राम किसी विशेष धर्म, संप्रदाय, या पहचान में बंधे नहीं हैं, बल्कि वे उस अनंत सत्य का प्रतीक हैं जिसे प्रेम, भक्ति, और आत्मा के मार्ग से पाया जा सकता है। उन्होंने कहा:

> "दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया।"

इसका अर्थ है कि संसार में रहते हुए भी ईश्वर को पाने का मार्ग सीधे आत्मज्ञान और साधना में निहित है, न कि बाहरी कर्मकांडों में।



कबीर जी का राम वही "अलख निरंजन" है, जिसे केवल अनुभूति और ध्यान के द्वारा महसूस किया जा सकता है।

आइए जानते हैं कि कबीर जी के प्रिय शिष्य कौन कौन थे।
कबीर जी के प्रिय शिष्य का नाम धनिया या धर्मदास जी बताया जाता है। धर्मदास जी का उल्लेख विशेष रूप से मिलता है, जो कबीर जी के सबसे प्रमुख शिष्य माने जाते हैं।

धर्मदास जी एक धनाढ्य व्यापारी थे, लेकिन कबीर जी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने सांसारिक मोह-माया त्याग दी और कबीर जी के सानिध्य में आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति की। कबीर जी ने अपने ज्ञान को धर्मदास में स्थानांतरित किया और उन्हें सत्य, भक्ति और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया। धर्मदास जी के साथ उनके संवाद और शिक्षाओं का उल्लेख कई कबीरपंथी ग्रंथों में मिलता है।

इसके अलावा, कबीर जी के अन्य शिष्यों में कमाल (कबीर जी के बेटे) और कमाली (उनकी पुत्री) का भी नाम लिया जाता है। ये दोनों भी कबीर जी के विचारों का पालन करते थे और कबीर जी की शिक्षाओं को आगे बढ़ाने में सहायक रहे।

कबीर जी के शिष्यों का कार्य उनके उपदेशों को समाज में प्रसारित करना और उनके विचारों को आगे बढ़ाना था, जो आज भी कबीरपंथ के रूप में प्रचलित है।

आइए जानते हैं कि 
कबीर जी की मृत्यु कैसे हुई।

कबीर जी की मृत्यु के संबंध में कई किंवदंतियाँ हैं, और उनकी मृत्यु को लेकर एक अद्भुत कथा प्रचलित है जो उनकी आध्यात्मिक महानता को दर्शाती है। कहा जाता है कि कबीर जी ने 1518 ईस्वी में मगहर, उत्तर प्रदेश में शरीर का त्याग किया। उनके अंतिम समय में वाराणसी और मगहर दोनों स्थानों का उल्लेख मिलता है। उस समय यह मान्यता थी कि जो व्यक्ति काशी (वाराणसी) में मरता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है, जबकि मगहर में मरने पर उसे पुनर्जन्म में नीच योनि में जन्म लेना पड़ता है। कबीर जी ने इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए काशी छोड़कर मगहर में देह त्याग करने का निर्णय लिया, यह सिद्ध करने के लिए कि मोक्ष स्थान से नहीं बल्कि सच्ची भक्ति और आत्मज्ञान से प्राप्त होता है।

कबीर जी की मृत्यु के बाद उनके शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ। उनके अनुयायी हिंदू और मुस्लिम, दोनों उनके शरीर को अपने-अपने तरीके से संस्कार करना चाहते थे। किंवदंती के अनुसार, जब उनके शरीर से चादर हटाई गई, तो उनके स्थान पर केवल फूल मिले। इसके बाद, हिंदुओं ने उन फूलों को जला कर और मुसलमानों ने उन्हें दफना कर अपनी-अपनी श्रद्धा अर्पित की।

इस घटना से यह संदेश मिलता है कि कबीर जी संप्रदाय, जाति, और धर्म के पार जाकर मानवता का संदेश देना चाहते थे, और उनकी शिक्षाएँ दोनों समुदायों के लिए एक अनमोल धरोहर बनीं।

आइए जानते हैं कि कबीरजी के नाम पंथ कितने हैं 
कबीर जी की शिक्षाओं और विचारों को मानने वाले विभिन्न समूहों ने उनके संदेश को आगे बढ़ाया, जिससे उनके कई पंथ या संप्रदाय स्थापित हुए। मुख्य रूप से कबीर जी के दो प्रमुख पंथ माने जाते हैं:

1. कबीरपंथ: यह सबसे बड़ा और प्रसिद्ध पंथ है जो कबीर जी की शिक्षाओं का पालन करता है। कबीरपंथी उनके विचारों को अपने जीवन में अपनाते हैं और कबीर जी के साक्षात अनुभवों, भक्ति, सत्य, और प्रेम के मार्ग पर चलते हैं। कबीरपंथी मुख्य रूप से उनकी रचनाओं जैसे साखी, रमैनी और बीजक को मानते हैं। कबीरपंथ का मुख्य केंद्र छत्तीसगढ़ में है, लेकिन यह पंथ भारत के अन्य हिस्सों में भी फैला हुआ है।


2. धर्मदासी पंथ: कबीर जी के प्रमुख शिष्य धर्मदास जी द्वारा स्थापित इस पंथ को धर्मदासी पंथ के नाम से जाना जाता है। धर्मदासी पंथ में कबीर जी के विचारों का प्रचार-प्रसार धर्मदास जी की शिक्षाओं के अनुसार किया जाता है। इस पंथ में भी कबीर जी की शिक्षाओं का पालन किया जाता है, लेकिन इसमें कुछ अन्य ग्रंथ और अनुशासन भी शामिल हैं, जिन्हें धर्मदास जी ने कबीर जी के संदेशों के साथ आगे बढ़ाया।



इसके अलावा, कबीर जी की शिक्षाओं का प्रभाव अन्य संतों और परंपराओं पर भी पड़ा, जैसे कि, गरीबदास पंथ, दादूपंथ, सतनाम पंथ, और रविदास पंथ, जो कबीर जी के सिद्धांतों से प्रेरित हैं। हालाँकि ये पंथ सीधे तौर पर कबीर जी से नहीं जुड़े हैं, लेकिन उनके अनुयायी कबीर जी के विचारों और उनकी शिक्षाओं का आदर करते हैं और उन्हें अपने आध्यात्मिक मार्ग का हिस्सा मानते हैं।

इस प्रकार, कबीर जी के पंथों और उनके प्रभाव से कई संप्रदाय विकसित हुए, जो आज भी कबीर जी के आदर्शों का पालन कर रहे हैं और उनके संदेशों को आगे बढ़ा रहे हैं।

तो दोस्तों कैसी लगी हमारी जानकारी, कमेंट करते जाइए और हिंदी धर्म को फोलो करना चाहिए।
अगली पोस्ट जरुर पढ़ें 

शुक्रवार, नवंबर 01, 2024

कैसे घर बैठे कमाई करें How To Make Money Online For FREE Home Side Income

दोस्तों आज हम बात करेंगे एक भरोसेमंद विश्वासपात्र app के बारे में,
हमने बहुत सारे एफिलिएट प्रोग्राम और fake वेबसाइट देखने के बाद एक अच्छी वेबसाइट खोजी है 
जिसका नाम है वॉइस सेंस ysense और इस वेबसाइट से किस तरह एक दूसरे को आगे से आगे जोड़कर डॉलर में पैसा कमा सकते हैं 
और उसमें सर्वे भी भर सकते हैं टास्क ऑफर वगैरा आते रहते हैं लेकिन
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दोस्तों Ysense की सबसे ख़ास बात यह है कि
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गुरुवार, अक्टूबर 31, 2024

लोगों की बातें ज्यादा नहीं सुननी चाहिए । Logon ki bate jyada nhi chunani chahiye

लोगों की बातें ज्यादा नहीं सुननी चाहिए 

 दोस्तों आप कर्म किए जाओ,

 आप किसी और के कहने में ना आए क्योंकि,

 लोगों की आदत है कहना 

अच्छे को बुरा कहते हैं 

और बुरा करते हैं तो भी बुरा कहते हैं 

अच्छा करते हैं तो भी अच्छा ही कह देते हैं

 इस तरह से उनका कहने से कोई हमारा लेना देना नहीं है 

इसलिए जो काम अपने खुद के लिए कर रहे हो या करने की ठानी है

 उसे आप करते रहिए क्योंकि वह काम आप खुद के लिए कर रहे हो

 किसी और के लिए नहीं कर रहे हो यदि आप किसी और के लिए कर रहे हो

 और वाह वाही के लिए कर रहे हो तो फिर आपको उनकी बातों को सुनना चाहिए

 लेकिन आप जो काम अपने खुद के लिए कर रहे हैं

 उस काम को आपको करना ही चाहिए

 लोगों के बहकावे में आते गए तो ,

वह आपका काम चौपड़ होने में समय नहीं लगेगा,


इसी विषय को लेकर आज मैं आपके सामने एक अच्छी कहानी लेकर आया हूं

 जिसे आप पढ़ कर यह जान पाओगे कि

 लोग कहां से कहां तक पहुंचा देते हैं तो पढ़िए।



दोस्तों एक समय की बात है 

एक गांव में एक बाप और एक बेटा ,

अपने एक गधे को लेकर खेत से घर की ओर आ रहे थे 

रास्ते में कोई मिला उसने देखते ही बोला कि , 

आपके पास गधा है तो बेटे को गधे पर बिठा दो

 यह चल नहीं पा रहा है बाप ने उसकी बात सुनकर बेटे को गधे पर बैठा दिया



 और खुद आगे आगे चलने लगा कुछ ही दूर पर दूसरा आदमी मिला

 जिसने देखते ही बोला बच्चा तो छोटा है आप बुड्ढे हो तो ,

आप गधे पर बैठ जाते बच्चा पैदल चल लेता 

उसकी बात सुनकर बेटा नीचे उतर गया 


और बाप को गधे पर बैठा दिया कुछ ही दूर चले थे कि ,

एक और आदमी मिल गया जिसने कहा कि बाप तो गधे पर चढ़ा है

 और बेटे को पैदल चला रहा है अब बाप ने बेटे को भी गधे पर बैठा दिया

 और चलने लगे थोड़ा आगे चलते ही फिर कोई मिल गया

 उसने देखते ही बोला कितने निर्दय आदमी हो,

 गधे की हालत खराब हो रही है फिर भी बेसहारा दोनों का बोझ का उठाकर चल रहा है।

उस आदमी की बात सुनकर दोनों गधे से नीचे उतरे 

और गधे को उल्टा बांध कर अपने कंधों पर लेकर चलने लगे तब तक गांव में आ गए 



गांव वाले देखकर हंसने लगे और

 कहने लगे बाप बेटा दोनों कितने बेवकूफ है जिस गधे पर चढ़ कर सफर करना चाहिए उसी 

गधे को कंधे पर उठाकर लेकर आ रहे हैं 

तो दोस्तों अब इस कहानी को पढ़ने के बाद आपके समझ में आ गया होगा कि

 लोग कुछ भी बोल सकते हैं लेकिन

 उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए यदि

 उनकी बातों पर ध्यान देते हैं तो फिर 

उसी बाप बेटे के जैसी स्थिति हमारी भी हो जाती है 

इसलिए यह सीखने से शिक्षा मिलती है कि

 हमें किसी और की परवाह ना करते हुए 

हमें हमारे कर्म करते रहना चाहिए 

 हमारा ब्लॉग़ आपको पसंद आया है तो एक प्यारा सा कमेंट करते जाइए, इससे भी मजेदार और अच्छी बातें जानने के लिए अगले पेज की तरफ चलिए।

धन्यवाद 

सोमवार, अप्रैल 22, 2024

रवि का उदय हो रहा है

 आम आदमी पिछले कई सालों से वोट देते आ रहे हैं, आम जनता के लिए कोई नेता काम ही नहीं करता हैं, आम आदमी को वैसे ही सरकारी दफ्तरों में चप्पल घिसने पड़ते हैं। कोई बड़े लोगों को फायदा होता हैं तो वो, आम जनता को समाज सेवी बन कर अपने मित्र नेता को समर्थन देने की सलाह देता हैं।

बड़ी बड़ी पार्टी का कोई भी नेता अपने विचार या बल से जनता का काम करवा भी नहीं सकता है, यहां तक कि यदि जनता के साथ कोई अन्याय हो रहा है तो भी उसे जुबां पर ताला लगाकर रखना पड़ता हैं। अन्यथा पार्टी और पद से इस्तीफा देना पड़ता हैं।

पश्चिमी राजस्थान में लोग आत्म निर्भर है, सरकार के भरोसे नहीं रहते हैं, वो लोग आवश्यकताए भी सीमित करके रहते हैं, अज्ञानता और अनुभव के अभाव में शिक्षा भी अधूरी रह जाती है, कोई परिवार पालन पोषण के लिए तुरंत रोजगार की खोज में अन्य राज्यों में चला जाता हैं तो कोई परिक्षा के पेपर खरीदने में असमर्थ होता हैं।

युवा भरे यौवन में समर्पण कर लेता है, सरकार और परिवार का कोई रिश्ता हैं भी, यह समझ ही नहीं पाता है।

राजनीति शब्द से भी कतराता हैं, उसे लगता हैं कि यह कोई भाई चारा बिगाड़ने वाली बीमारी का नाम है।

कोई राजनीति या राजनेता के बारे में बुरा सोचता भी नहीं है क्योंकि इसके दो कारण हैं।

पहला तो यह है कि हमारा परिवार हमे ही पालना है कोई नेता मदद नहीं करता हैं।

दूसरा यह है कि हम बाहर रहते हैं, परिवार को कोई परेशान ना करें, इसलिए वो कोई ऐतराज नहीं करता हैं।

उसे नहीं मालूम कि हमारी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर नेताओं की कई पीढ़ियां सुधर गई।

आज जब कोई युवा राजनीति की बात करता हैं तो, आम आदमी उस युवा से भी अधिक डर जाता हैं ,

और हजारों तर्क देता हैं, समाज, धन, पार्टी और सरकार आदि, रुकावटों की बात करता हैं।

खुद को पतली रस्सी से बांधा हुआ हाथी मान लेता है जिसे, एक झटके में भी तोड़ा जा सकता है।

कहता है बड़ी बड़ी पार्टियों के सामने जीतना भी मुश्किल है और काम भी नहीं करवा पाएगा।

उसे यह नहीं पता कि एक आदमी ने ही पार्टी की शुरुआत की और उसे बड़ी पार्टी बनाया।

काम करवाने की बात करता हैं तो उसे पता होना चाहिए कि बड़ी पार्टियां जहां जहां हारती है वहां अगली बार जीतने के लिए भी काम करती हैं।

लाख मुसीबतों के बाद भी पार्टी अपना क्षेत्र हारना नही चाहती, 

आज बाड़मेर जैसलमेर में एक युवा राजनीति में आने की कोशिश कर रहा हैं तो, देश की बड़ी पार्टियां और सभी राजनेता, सारे ऐशो आराम छोड़ कर, थार के रेगिस्थान में डेरा डालने लगे।

लेकिन उनसे भी ज्यादा कोई डरा हुआ है तो वह है यहां का आम आदमी, जो पार्टियों के दबाव में आ रहा हैं।

आज डरने का नहीं, हिम्मत करके नए नेता को तैयार करने का समय है, 

तुम्हारे एक वोट की समझने का अच्छा अवसर आया हैं,

तरीका भी सरल है, तुम चाहे किसी भी पार्टी के साथ घुम रहे हैं या समर्थन देने की हां कर चुके हैं तो भी, पिछले ७५ सालों के विकास को ही ८० साल का विकास समझकर, ये पांच साल नए नेता भाटी को सेव का ९ नंबर बटन दबाकर दे देना।

तुम्हे कोई देख नहीं रहा होगा, कहीं तुम्हारा नाम सामने नही आ रहा हैं।

फिर डर किस बात का कर रहे हैं।

यदि आज भाटी हार गया तो, इस क्षेत्र से कोई भी नेता बनने की सोच भी नही सकता है और इन्ही नेताओं के परिवार वाले आयेंगे और हम पर हमारे बच्चों पर राज करेंगे।

यदि आज आपने रविंद्र सिंह भाटी को जीता दिया तो, अगले चुनावों में अनेकों युवा नेता बनेंगे और देश को पढ़े लिखे और बेदाग छवि वाले नेता मिलेंगे।

नेताओं के वोट मांगने और काम करने के तरीके भी बदल जायेंगे।

आपके एक इशारे पर हर सरकारी काम होने लगेगा क्योंकि आज जो डर हम पालकर बैठे थे वो, इन नेताओं को घेर लेगा, 

और तो क्या बताऊं, नेताओं का तरीका बदलना हैं तो, 

रिश्वत को रोकना है तो, सरकारी दफ्तरों से फटाफट काम करवाना है तो, नेताओं को हैसियत दिखाना है तो, बाड़मेर जैसलमेर बालोतरा की पहचान देश को करवानी है तो, मारवाड़ी भाषा को मान्यता दिलानी हैं तो, ओरण और गोचर भूमि से अतिक्रमण हटाना है तो, पानी के टैंकरों से मुक्ति पानी हैं तो और खुद को खुद की पहचान करवानी है तो, सिर्फ वोट ही तो रविंद्र सिंह भाटी को देना है।

बैलेट 9 नंबर सेव का निशान याद रखना हैं।

धन्यवाद

लेखक: इस क्षेत्र


 का मतदाता (आगामी विचारक)




सोमवार, नवंबर 28, 2022

आंवला पूजा के साथ साथ इलाज भी करता है ayurvedic medicine

 


शाकाहारी लोगों के साथ एक समस्या है कि उनकी हड्डियां जल्दी कमजोर हो जाती है और घुटने असमय ही जवाब दे देते हैं।

एक समाधान

हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में .... परंपराओं में पूजा पाठ में "विटामिन सी" शामिल है!

 पूरी दुनिया में  एंटीऑक्सीडेंट को जब कोई जानता नहीं था,

उस एंटी ऑक्सीडेंट और एंटीएजिंग के स्रोत आंवले

की पूजा की जाती है!!

- आंवले को खाना परंपरा माना जाता हो

 - आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करना शुभ माना जाता है 

आंवले की लकड़ी को कुएं में लगाया जाता हो ताकि जो पानी भी एंटी ऑक्सीडेंट से  भरपूर आए 


उस देश में एमवे और फॉरएवर जैसे लुटेरी कंपनियां अलग-अलग न्यूट्रास्यूटिकल के नाम से 

विटामिन सी,

विटामिन डी

 ओमेगा

 एंटीऑक्सीडेंट

 के नाम से हमें 

"हड्डियों का चूरा"

 "मछली का पाउडर" या अलग-अलग पशुओं की दांत,

 खाल,

 जैसा नॉनवेज खिलाए!        

 रिवाइटल जैसे कैप्सूल जहां हजारों करोड़ में लोग सुबह सुबह खा जाते हों,

 तो यह मानसिक गुलामी ही कहा जाएगा,


जिस दिन आपकी सब्ज़ी में आंवले का उपयोग होना शुरू हो गया उस दिन से आधा मेडिकल माफिया जो आपको दिन रात लूटता रहता वह भाग जाएगा। 


 सनातन भारत में सब्जी में खट्टापन लाने के लिये टमाटर के स्थान पर आंवले का प्रयोग होता था । 

इसलिये सनातन हिंदुओ की हड्डियां महर्षि दधीचि की तरह कठोर होती थीं।


इतनी मजबूत होती थी कि महाराणा प्रताप का महावज़नी भाला उठा सकतीं थी । 


आज तमाम तरह के कैल्शियम विटामिन्स खाने के बाद भी जवानी में ही हड्डियां  कीर्तन करने लगती हैं । 


जिस मौसम में देशी टमाटर मिले तो ठीक लेकिन अंडे जैसे आकार के अंग्रेजी टमाटर खाने के स्थान पर आंवले का प्रयोग आपकी सब्ज़ी को स्वादिष्ट भी बनाएगा और आपको मेडिकल माफिया के मकड़जाल से भी बाहर निकालेगा । आंवला ही एक ऐसा फल है जिसमे सब तरह के रस होते है । जैसे आंवला , खट्टा भी है मीठा भी कड़वा भी है नमकीन भी । 


आँवले का सनातन संस्कृति में महत्तम इतना है कि दीपावली के कुछ दिन बाद आँवला नवमी मनाई जाती है । 


आपको करना केवल इतना है कि साबुत या कटा हुआ आँवला ,बिना बच्चों और आधुनिक सदस्यों को बताए सब्ज़ी में डाल देना है । 


अगर आँवला साबुत डाला है तो सब्ज़ी बनने के बाद उसको ऐसे ही खा सकतें है । जब आंवला नहीं मिलता तो आँवले को सुखा कर पीस कर इसका प्रयोग उचित है । 


मेडिकल माफिया को भगाएं आंवला अपनाएं ।

लेखक 

Cp राकेश भारत

शुक्रवार, फ़रवरी 11, 2022

प्रेमी संग भागी समाज को छोड़ Love story and public policy



जी हां सही पढ़ा आपने, आज हम बात करेंगे भागने वाले विषय पर, जो आजकल हर गांव, देहात और समाज में व्याप्त हैं।

कहां तक इसे सही ठहरा सकते हैं, और कितना गलत साबित होता हैं।

क्या कानून में बदलाव की आवश्यकता है या समाज का रवैया अपनाया जा सकता है।

विषय लंबा जरुर है लेकिन यह एक भाई बहन, पति पत्नि, मां बाप, देवर जेठ, सास ससुर, नाना नानी, बुआ फूंफा, और जाति समुदाय सबके लिए चुल्लू भर पानी में डूबने के समान हो जाता हैं। चाहे लड़का या लड़की दोनों में से कोई गलती करें। आप कहोगे कि लड़के वाले समाज की तो इज्जत खराब नही होगी लेकिन ऐसा नहीं है ।

अंदर ही अंदर संदेह और भेदभाव की नजर से देखा जाता है। कुछ लोग तो उसके घर का पानी ही नही पीना चाहते है।

चलो आज हम बात करेंगे लड़की के परिवार की।

मां बाप अपनी परवरिश को दोष मान कर, भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु यह क्या कर दिया, जिसे एक श्रेष्ठ कुल की जननी, ससुराल की महारानी, परिवार और समाज की लाडली, गांव का नाम रौशन करने वाली , संसार में सबसे भोली भाली बच्ची समझ रहे थे वो तो, हमे मुर्दा , नासमझ, गंवार, अनाड़ी और अनुपयोगी वस्तु समझ रही थी। जब उसके लिए कुछ काम के नही रहे तो, कूड़ेदान में फेंक गई। हे प्रभु धन्य है तेरी जिंदगी, हम आ रहे हैं तेरे पास, नहीं जीना इस मतलबी संतान के सामने,

कहीं फिर से अपनापन ना आ जाए अलविदा।

जो भाई उसे बहना मान कर, उसके लिए हर खुशियां ढूंढ रहा था, अच्छा लड़का और शादी में होने वाली हर रीति रिवाज, धन दौलत, यहां तक की खुद कुर्बान हो सकता था, बहन के लिए, वो भी आज राखी का धागा तोड़ कर रो रहा था कोने में।

परिवार के अन्य लोग भी शर्मिंदा हो गए, समाज भी अपमानित महसूस कर रहा है।

फिर लापता होने, या अपहरण  करने की पुलिस को सूचना दी जाती हैं तो पुलिस भी कहती हैं भाग गई होगी किसी लौंडे के साथ, भूल जाओ उसे।

सब उस परिवार को भला बुरा कह रहे हैं, बेटी कहां जा रही है, क्या कर रही है, तुम जिंदा थे या मर गए थे, बेटी की करतूतों पर ध्यान देना चाहिए था, हम सबकी नाक कटवा दी, अनेक बाते की जाती हैं जो, उस परिवार पर लाठियों के मारने से भी अधिक दर्द पहुंचता हैं।

जिनसे संबंधी बनने वाले थे वो भी  मां बाप को दोषी ठहरा देते हैं।

गैर समाज के लोग, लड़की वाले समाज पर भी चुटकियां लेने से नही चूकते और तो और पड़ोस गांव वाले भी लड़की के गांव वालों से कहते हैं, आपके गांव की लड़की भाग गई, मर जाओ, गांव वालों।

जब कभी किसी परिवार, समाज या गांव में ऐसी स्थिति हो जाती हैं तो, हर बात काट कर, यही बात पहले की जाती हैं।

यहां तक कि हम और आप भी उत्सुक रहते हैं , आगे क्या हुआ ? सब जानना चाहते हैं।

ऐसा क्यों होता हैं इसका कारण, समाज या परिवार नहीं है।

कारण बहुत बारीक और सत्य है जो यह लेख पूरा पढ़ने के बाद समझ जाओगे।

अब बात करते हैं कानून और अधिकार की, जो भागने और भगाने में मदद करता हैं, जो परिवार, समाज और मां बाप को नही मानता है। कानून केवल दो आदमियों के वश में एक काले कोट वाले और दूसरा गांधी वाले फोटो का , उसके बाद में अंधा बन जाता हैं।

हमारे मन में यह बात भरी जाती हैं कि कानून और प्यार दोनों अंधे होते हैं लेकिन यह एक साफ सुथरा झूठ है।

प्रेम भी देख कर किया जाता हैं और कानून भी सबूत देख कर सजा देता है तो, अंधे कैसे हो गए।

पट्टी तो हमारी आंख पर बांधी जाती हैं, क्या कभी आंख बंद करने से अंधेरा हो सकता है।

दूसरी बात करेंगे कि कानून सबके लिए समान है, यह भी झूठ को छुपाने के लिए बोला जाने वाला झूठ है।

कभी कभी बड़े लोगों की लड़कियां भी भागने की कोशिश करती हैं या भाग जाति हैं लेकिन, यह बात गली मोहल्ले या मीडिया में आने से पहले ही सलटा दी जाती हैं।

कानून पढ़ाने वालों को भी इज्जत प्यारी होती हैं, या तो सहमति दे कर विवाह कर देते हैं या लड़के लड़की को उपर ही भेज देते हैं, बहाना बना देते हैं कि एक्सीडेंट हो गया, सुसाइड कर दिया , आदि।

जज, वकील , नेता  पुलिस और सरकारी कर्मचारी सभी मिल जाते हैं एक दूसरे से लेकिन, आम आदमी का साथ देकर, उन्हें क्या मिलेगा।

कानून लोगों की सेवा सुरक्षा और अधिकार की रक्षा के लिए बना है न कि, शोषण, डर और दबाने के लिए बना था।

जिस दिन से कानून बना है तब से आज तक कई परिवर्तन भी हुए हैं, आगे भी होंगे, समय समय पर बदलाव जरूरी होता हैं क्योंकि, लोगों की जीवन शैली में भी बदलाव आया है।

कानून देश की व्यवस्था है देश का जनक तो नहीं है।

समाज, नागरिक और जनता का ही देश है, व्यवस्था में सुधार करना भी उनका अधिकार है।

कानून कहता है कि बालिग होने पर व्यक्ति अपना फैसला खुद कर सकता है क्योंकि, कानून निर्जीव हैं उसमें भावनाएं नही है, उसको दर्द नही होता हैं, इसलिए कठोर बन जाता हैं।

कानून में यदि जान होती या समझने की शक्ति होती तो कहता कि, बालिग होने पर व्यक्ति अपना फैसला खुद तब तक नहीं कर सकता है जब तक, उसने जन्म से बालिग बनाने वाले लोगों का एहसान ना चुका दिया हो।

मां बाप से बच्चों की शादी का हक नहीं छीनना चाहिए, क्योंकि उनका अनुभव कभी गलत नहीं होता हैं ।

कानून कोर्ट मैरिज करवा देता हैं जो, गरीब परिवार के लिए उपयोगी है लेकिन, भागने वाले फायदा ले लेते हैं, यह गलत बात है ।

शादी तो समाज में ही होनी चाहिए, खर्चा भले मत करो लेकिन साक्षी तो हजारों होंगे, सबका आशीर्वाद, अनुभव और सहमति तो प्रकट होगी।

प्रेम विवाह करने वाले लोगों में कुछ समय बाद तलाक की नौबत आ ही जाती हैं, फिर बदले की भावना से दहेज वाला केस बन जाता हैं। प्रेम विवाह जीवन भर कम लोग ही चला पाते हैं, नियत बदलते समय नहीं लगता है।

क्योंकि दो लोगों( प्रेमियों) के बीच में या साथ में कोई नहीं होता जो, सही राह दिखा सके और वो भी अपना फैसला खुद करने में यकीन रखते हैं इसलिए, अलग होने में समय नहीं लगता है।

जबकि सामाजिक विवाह में हर कोई सलाह, सहारा और साथ दे सकता हैं, दोनों को साथ रहने के लिए मना सकते हैं, जरूरत होने पर कठोरता भी दिखा सकते हैं, इसलिए तलाक शब्द जहन में नहीं आता है।

उसी कठोरता को कानून अपराध मान बैठा है, और समाज को अपराधी।

कानून को यह भी गारंटी लेनी चाहिए कि, जिन दो प्रेमियों को समाज से अलग करके एक दूसरे से मिला रहा हैं वो कभी अलग नहीं होने चाहिए।

किसी एक पर भी अपने साथी की वजह से कोई दबाव, आंच या हानि नहीं होगी।

और यदि ऐसा होता हैं तो कानून को भंग कर दिया जाएगा।

मां बाप के पास संतान का कोई अधिकार नहीं रहता है तो, संतान को जन्म देने या बड़ा करने का कोई कारण बताए।

मां बाप और संतान के बीच में कानून घुस सकता हैं तो, संतान पैदा होते ही कानून की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि उसकी हर आवश्यकता कानून पूरी करेगा, मां बाप को पालन पोषण के कर्तव्य से मुक्त कर देना चाहिए।

मेरा ब्लॉग जो भी पढ़ रहे हैं, यह लेख आपके लिए महत्वपूर्ण हैं, चाहे आप समाज से तालुक रखते हों या कानून के रखवाले हों,

चाहे आप भागने का विचार कर रहे हों या भाग चुके हो,

चाहे आप भागने वाले के साथ हों या खिलाफ हों,

सबको पढ़ना और जानना जरूरी है इसलिए आपके अन्य मित्रों और दुश्मनों को भी साझा किया करें।

आप सामाजिक हों तो कानून को फटकार जरुर लगाएं,

और यदि आप कानूनी रूप से हों तो "कानून" को समाज का आदर करना सिखाओ, किसी मां बाप और संतानों के बीच में मत घुसने दो, आपका कहा तो मानता होगा,

और आपके पास तो हथौड़ा भी होता हैं ना, जो टेबल पर पीटते हैं   "ऑर्डर ऑर्डर" करके,

चलो ठीक है, जो जैसा समझे, मैने मेरी भावना प्रकट कर दी, और यह मेरा भी अधिकार है।

आपको बुरी लगे तो अन पढ़ी कर देना, अच्छी लगी तो याद कर लेना और भी विचार व्यक्त करूंगा, धन्यवाद।

सामाजिक विचारक - देवा जांगिड़ 

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